रेवाड़ी | धारूहेड़ा निवासी एक किसान अपनी 40 एकड़ जमीन पर जैविक खेती कर हर महीने लाखों रुपये का मुनाफ़ा कमा रहा है. किसान यशपाल खोला ने बताया कि रासायनिक खेती करने से खर्चा कम आता है और मिट्टी भी उपजाऊ बनी रहती है. उनका मक़सद जैविक खेती कर जिले को विभिन्न कैंसर जैसी घातक बीमारियों से मुक्त करना है.
उन्होंने बताया कि पहले वह कपड़ों की दुकान चलाते थे, लेकिन पिता कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे. तभी उनको आइडिया आया कि जैविक खेती कर कैंसर से इस समाज व जिले को मुक्त कराया जा सकता है. इसके साथ ही उन्होंने 2014 में धीरे-धीरे जैविक खेती करना शुरू कर दिया व 2016 आते-आते सरसों, गेहूं तथा बाजारा जैसी फसलों के अलावा अनेक किस्म की सब्जियां व फल उगाने लगे.
जिनमें गोभी, घीया आलू, टमाटर, भिंडी. तौरी, बैंगन, ब्रोकली, पालक, गाज़र, खरबूजा, तरबूज, सकरकंदी व अन्य करीब 30 किस्म की खेती शामिल हैं. उन्होंने बताया कि आर्ट से स्नातक व हिसार से कैमिकल एंड फर्टिलाइज़र्स कोर्स करने के बाद यह जैविक खेती का काम शुरू कर दिया था. कोविड-19 के दौर में लगातार लोगों की इम्यूनिटी पावर गिर रही थी, जिसका मूल कारण था फल व सब्जियों में रासायनिक खाद डालना. इस वजह से उनके जैविक खेती करने के सपने को और अधिक बल मिला.
40 एकड़ जमीन में करते हैं जैविक खेती
उन्होंने बताया कि उनका जन्म किसान परिवार में ही हुआ है. उन्होंने बचपन से ही किसान व खेतों को देखा है. शुरूआत में कपड़ों की दुकान चलाई लेकिन मुनाफ़ा कम मिलना, पिता भी कैंसर से पीड़ित थे. इलाज़ के लिए काफी पैसों की जरूरत थी तो धंधा बदलने का निर्णय लिया. 2 साल गेहूं-सरसों की खेती की लेकिन फिर भी मुनाफ़ा अच्छा नहीं मिला. उसके बाद एक लंबी रिसर्च व मेहनत कर जैविक खेती में सब्जियां व फल उगाना शुरू किया.
वर्तमान में यशपाल 40 एकड़ जमीन में जैविक खेती कर लाखों का मुनाफ़ा कमा रहे हैं. उनका फार्म धारूहेड़ा ऑर्गनिक एग्रो फार्म के नाम से मशहूर है, जोकि पीजीएस गाज़ियाबाद से रजिस्ट्रर्ड है. उनके फार्म में 25 कर्मचारी तैनात हैं, जिनका काम फसल का रख-रखाव व मार्केटिंग के लिए पैकेजिंग करना है. इसके अलावा गांव में भी 12 एकड़ में इसी प्रक्रिया से खेती कर रहे हैं.
प्रति एकड़ 20-25 हजार खर्च, लाखों में कमाई
उन्होंने बताया कि सीज़न में प्रति एकड़ 20 से 25 हजार का खर्चा आता है, जिसमें जैविक खाद व लेबर खर्च शामिल हैं. इसके अलावा मार्केट के लिए पैकेजिंग, वाहन, होम डिलीवरी का चार्ज आता है. यानी सीज़न का कुल खर्च प्रति एकड़ 40 से 45 हजार तक पहुंच जाता है. इनकम सीज़न पर निर्भर है.
कई बार पाला पड़ने व मौसम ख़राब होने की वजह से फसल भी प्रभावित हो जाती है, जिसके कारण नुक़सान भी उठाना पड़ता है. वहीं, अगर सबकुछ सही रहा तो प्रति एकड़ लाख से डेड लाख की इनकम भी प्राप्त हो जाती है. उन्होंने बताया कि वो मिश्रित खेती करते हैं. एक क्रोप में नुक़सान हो तो दुसरी क्रोप से आय बनी रहे, ताकि आर्थिक संकट पैदा न हो.
फार्म हाउस में छात्रों व छोटे किसानों को मिल रही ट्रेनिंग
उनके फार्म हाउस में एक लैब भी है, जहां जैविक खाद तैयार की जाती है. वहां समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें कृषि अधिकारियों व विज्ञानिकों को बुलाकर किसानों को जैविक खाद निर्माण व जैविक खेती की ट्रेनिंग देते हैं. इसके अलावा हिसार कृषि विश्वविद्यालय के छात्र भी यहां लैब में जैविक खाद निर्माण प्रक्रिया की ट्रेनिंग लेने आतै हैं.
उनके फार्म में मिश्रित खेती, बम्बू स्टैकिंग, टपका सिंचाई, लौटरनल, मल्चिंग, पैक हाउस, प्याज का भंडारण, रिटेल व थोक का काम करते हैं. वहीं जैविक उत्पादन, सब्जियों की ग्रेडिंग, बॉक्स पैकिंग, सीड प्रोसेसिंग, सब्जियों का भंडारण व प्रोसेसिंग, तथा नर्सरी भी तैयार करते हैं. इसके अलावा कैचुवा फार्मिंग में पशुपालन व्यवसाय भी करते हैं.
कहां-कहां की जाती है सब्जी व फलों की सप्लाई
उनके फार्म से धारूहेड़ा, गुरूग्राम, दिल्ली, रेवाड़ी, भिवाड़ी तक फल व सब्जियां सप्लाई की जाती हैं. इनकी होम डिलीवरी भी की जाती है. इसके अलावा टाटा ग्रुप की बिगबास्केट कंपनी को भी फल व सब्जियां बेची जाती हैं. वहीं, काफी लोग फार्म हाउस में भी खरीदने आते हैं.
कई पुरुस्कार अपने नाम कर चुके हैं यशपाल
यशपाल खोला को सब्जी एक्सपो 2020 में गाजर की खेती में हरियाणा में पहला स्थान पाने पर कृषि मंत्री व इजराइल के कृषि विशेषज्ञों द्वारा सम्मानित किया गया था. शताब्दी सीड्स कंपनी ने उन्हें अपना प्रचारक बनाया, वहीं किसान दिवस पर प्रगतिशील किसान अवार्ड से सम्मानित किया गया. उन्हें जिले का जैविक खेती का प्रशासनिक ब्रॉडं एबैंसडर बनाया गया है. उन्होंने बताया कि उनकी सफलता में राव संजय का अहम योगदान है. उनकी भी जैविक खेती का प्रचार-प्रसार करने में अहम भूमिका है.
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