पहली बार किसान आंदोलन में महिलाओं की जबर्दस्त भागीदारी, सर्दी में सड़क पर डटे रहने का एलान

सोनीपत । तीन नए कृषि कानूनों के विरुद्ध चल रहे किसान आंदोलन में पहले होने वाले आंदोलनों से बहुत कुछ अलग हो रहा है. पहली बार इस किसान आंदोलन में इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं ने भाग लिया है जितना पहले किसी आंदोलन में नहीं लिया. महिलाएं भाग लेने के साथ साथ इतने लंबे समय तक आंदोलन में लगातार डटी हुई है.

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पंजाब के अलावा अन्य राज्यों से भी हुई एकत्रित

पहले इस किसान आंदोलन में केवल पंजाब की महिलाएं शामिल थी. लेकिन अब अन्य राज्य राजस्थान, दिल्ली, यूपी और हरियाणा की भी महिलाएं इस आंदोलन में शामिल हो गई हैं. यह महिलाएं धरना स्थल पर बैठकर खाना बनाने से लेकर नारेबाजी तक के सभी कार्य कर रही हैं. इन महिलाओं ने साफ कहा है कि जब तक भारत सरकार इन नए कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती तब तक वह इस आंदोलन में डटी रहेंगी चाहे यह सर्द मौसम और ठंडी हवाएं कितना ही कहर क्यों ना ढाएं.

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23 दिनों से सड़कों पर बैठी हैं महिलाएं

पिछले 23 दिनों से नेशनल हाईवे 44 के सिंधु बॉर्डर पर नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन कर रहे हैं. पहले केवल पंजाब से कुछ महिलाएं आंदोलन में शामिल होने आई थी. लेकिन धरना शुरू होने के पश्चात धीरे-धीरे महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी. अब दिल्ली, यूपी, हरियाणा और राजस्थान से भी महिलाएं पहुंच रही हैं.

महिलाओं का तर्क

जब इन महिलाओं से बातचीत की गई तो भिन्न-भिन्न महिलाओं ने भिन्न-भिन्न विचार रखें

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भारत सरकार ने जिस प्रकार से यह किसी कानून बनाए हैं उससे किसानों की जमीने नहीं बच पाएंगी. हमारे पास हमारी जमीन ही परिवार को चलाने का एक माध्यम है, क्योंकि परिवार का गुजारा खेती से ही होता है. जब हमारी जमीन ही नहीं रहेगी तो खेती किस प्रकार होगी और बड़ा परिवार कैसे चलेगा. इसलिए हम भी इस आंदोलन में शामिल होने आई हैं. जब तक भारत सरकार इन कानूनों को रद्द नहीं करेगी तब तक हमारा यह आंदोलन इसी प्रकार जारी रहेगा. किसी भी प्रकार से हम पीछे नहीं हैं और आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं. -गुरप्रीत, जालंधर.

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दो दिन पहले ही हम यहां पर आए हैं और जब तक यह आंदोलन जारी रहेगा तब तक हम यहीं रहेंगे. हम शांति पूर्वक इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं और सरकार से मांग करते हैं कि इन तीन काले कृषि कानूनों को रद्द किया जाए. क्योंकि इन कृषि कानूनों से किसानों को कोई लाभ नहीं होगा. किसान नहीं चाहते कि यह किसी कानून बने रहे तो सरकार को चाहिए कि वह इन कानूनों को रद्द कर दें. किसान इस आंदोलन से खुश नहीं है. हम सभी मजबूरी में सड़कों पर बैठे हैं. यदि सरकार हमारी मांगे मान ले तो हम भी खुशी से अपने घर की ओर चले जाएंगे. -जसबीर कौर, दिल्ली.

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