पिछले हफ्ते ही हरियाणा सरकार ने निर्णय लिया था कि अब रोडवेज बसों में सवारियों की संख्या को बढ़ाया जाएगा तथा सभी 52 सीटों पर सवारियां बैठाई जाएंगी. जिसके मद्देनजर सवारियों को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं ही उठानी होगी. इस नियम के आते ही बसें सवारियों को सामान की तरह ढोने लगी. खासकर निजी बस संचालक तो छतों पर भी सवारियों को बैठाने से परहेज नहीं कर रहे. जिसके बावजूद अधिकारियों के द्वारा उन पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही.
कोरोना गाइडलाइंस का पालन दूर-दूर तक नहीं
बसों में इस तरह भीड़भाड़ इकट्ठा होने से इस महामारी का खतरा आश्चर्यजनक रूप से भयावह है. परंतु फिर भी सम्बंधित विभाग इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है. जहां निजी बसें नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं वहीं दूसरी तरफ रोडवेज विभाग भी महामारी की सुरक्षा हेतु कोई खास व्यवस्था नहीं कर रहा है. ऐसे में घर से बाहर निकल इन बसों में बैठना बीमारी को खुला निमंत्रण है. प्रशासन को इसकी तरफ ध्यान देकर सख्त नियम बनाने चाहियें.
सरकार के अपने ही नियमों में विरोधाभास क्यों?
प्रदेश सरकार हर रोज नए नियम बनाकर अपनी ही किरकिरी करवा रही है क्योंकि एक तरफ तो जहां शादियों में मात्र 50 लोगों को ही इक्कठा होने के आदेश हैं तथा किसी भी शोक समारोह मे 20-30 लोगों को ही इजाजत है. वहीं 15 फ़ीट जगह में 52 सवारियों को बैठाने से उन्हें कोई गुरेज नहीं और इतनी सी जगह में भी लोग धड़ल्ले से बिना मास्क, सेनेटाइजर के यात्रा कर रहे हैं. इसलिए सरकार को अपने नियमों व नीतियों की समीक्षा कर सख्त नियम अपनाने चाहिए जिससे लोगों को कोई नुकसान न हो. सरकार को अपने वित्तीय लाभ की बजाय मानव संसाधन जैसी अमूल्य धरोहर को सहेजना चाहिए जो इस वित्त का कारण व कारक दोनों है.
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