पानीपत | हरियाणा में एक ऐसा स्कूल है, जहां पर 70 फ़ीसदी बच्चे सरकारी पदों पर आसीन हैं. कारण यह है कि यह नेत्रहीन बच्चे कड़ी मेहनत के दम पर सफलता हासिल कर रहे हैं क्योंकि इन बच्चों में सीखने की ललक बाकी लोगों की तुलना में काफी अधिक है. हरियाणा के एकमात्र नेत्रहीन स्कूल में 150 नेत्रहीन बच्चे पढ़ते हैं. ये बच्चे न केवल पढ़ते हैं बल्कि कुछ न कुछ गुण भी सीखते हैं. पानीपत ब्लाइंड स्कूल में 16 शिक्षक हैं जो इन नेत्रहीन बच्चों को शिक्षा देते हैं. इन शिक्षकों में से 6 शिक्षक नेत्रहीन हैं. खास बात यह है कि यहां से पढ़ाई पूरी करने वाले 70 फीसदी छात्र आज सरकारी पदों पर हैं.
सामान्य बच्चों की तुलना में जल्दी सीखने की ललक
ये बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में जल्दी सीखते हैं. इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्र भले ही देख नहीं पाते लेकिन उनके अंदर एक ऐसी रोशनी छिपी होती है जो उन्हें आम बच्चों से अलग करती है. इतना ही नहीं इन बच्चों में एंड्रायड फोन इस्तेमाल करने की भी गजब की कला है. कढ़ाई, बुनाई, सिलाई से लेकर सूई में धागा भी पिरो लेते हैं. यहां के शिक्षक भी बच्चों के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं.
विज्ञान व गणित के शिक्षक अनीश गोयल ने बताया कि एमएससी करने के बाद उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी और उसके बाद उनका जीवन संघर्ष से भर गया. उसने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी चुनौतियों को अपना हथियार बनाकर एक मिसाल कायम की.
बच्चों में एंड्रायड फोन चलाने की गजब कला
दृष्टिबाधित बच्चों की बात करें तो वे सामान्य बच्चों की तुलना में तेजी से सीखने में माहिर हैं. संगीत के छात्र अमन ने बताया कि वह कैसियो बजाता है और उसे यह बहुत आसान लगता है. आप चाबियों को छूकर जितनी जल्दी हो सके दबाना नहीं सीख सकते. इतना ही नहीं हरियाणवी गानों के अंदर अमन का म्यूजिक बजता है. वहीं, एक छात्र रजत का यूट्यूब है जिसके 60 हजार से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं.
शतरंज के खेल में की महारत हासिल
स्कूल में ही पढ़ने वाला छात्र चिंटू बचपन से ही नेत्रहीन है और शतरंज के खेल में इस कदर महारत हासिल कर चुका है कि अब वह राष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंट में हिस्सा रहा है. इस स्कूल में 50 दृष्टिबाधित बालिकाएं और 100 दृष्टिबाधित बालक भाग लेंगे. इन छात्रों को पढ़ाने के लिए एक बार में 8 से 10 बच्चों की क्लास ली जाती है.
उसी स्कूल में पढ़ने वाले शिक्षक गुरनाम सिंह ने संघर्ष और चुनौती को स्वीकार करते हुए कहा कि वह एक बार इस स्कूल में एक छात्र के रूप में आए और उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल करने और इन बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया जो उनके जैसे नेत्रहीन हैं. उनका मकसद भी यही है कि वह अपने जैसे बच्चों को कामयाब बनाएं.
70 फीसदी बच्चे सरकारी पदों पर
आपको बता दें कि स्कूल में पढ़ने वाले 70 फीसदी बच्चे सरकारी पदों पर हैं. कुछ बड़े पदों पर भी आसीन हैं. कुछ बैंकों में पीओ और क्लर्क की पोस्टिंग होती है तो कुछ की प्रोफेसर के पदों पर. इसी स्कूल में पढ़ने वाले छात्र सुरेंद्र लांबा आज एचसीएस के पद पर हैं. वर्तमान में वह समालखा में ईटीओ के पद पर कार्यरत हैं.
सुरेंद्र लांबा ने कहा कि उन्होंने इसी स्कूल से शिक्षा प्राप्त की है और आज इस पद पर बने हैं. उन्होंने कहा कि नेत्रहीन छात्र सामान्य छात्रों से अलग होते हैं लेकिन जब वह संघर्ष और चुनौती को स्वीकार कर लेता है तो उसके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं होता.
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