छड़ियों का मेला: 150 साल पुरानी गोगा माड़ी पर लगता है छड़ियों वाला मेला, राखी वाले दिन से होती है शुरुआत 

अंबाला । जाहरवीर गाेगा महाराज की छड़ियाें का मेला राखी वाले दिन से शुरू हाे जाता है. कैंट के गांधी मार्केट, बब्याल गाेगा माड़ी व सिटी के नदी माेहल्ला में गाेगा माड़ी पर छड़ियाें का मेले की काफी आस्था है. यहां लाेग दूर-दराज से मनाेकामना पूरी हाेने पर छड़ियां चढ़ाने के लिए आते हैं. कई भगत ताे पीढ़ी दर पीढ़ी छड़ियां ला रहे हैं. इतिहास की बात करें ताे शहर में लगभग 150 साल पुरानी जाहरवीर गाेगा महाराज की गाेगा माड़ी है जिन पर छड़ियाें का मेला लगता है. आइए छड़ियाें वाले मेले व गाेगा माड़ी के इतिहास से हाेते हैं रूबरू.

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बागड़ की ईटाें से बनाई माड़ी: बब्याल स्थित गाेगा माड़ी के संरक्षक याेगी दिनेश नाथ भगत के परदादा बधावा नाथ भगत ने गाेगा माड़ी की सेवा की. उसके बाद उनके पाेते शमशेर नाथ भगत ने 75 साल तक गाेगा माड़ी की सेवा की. याेगी दिनेश नाथ ने बताया कि बब्याल की गाेगा माड़ी 150 साल पुरानी है. जब परदादा भगत बधावा नाथ सेवा किया करते थे ताे छाेटे से कमरे में समाधि हुआ करती थी.

उनके बाद उनके बेटे शमशेरनाथ भगत ने 75 साल गाेगा माड़ी की सेवा की. फिर 12 सितंबर 2012 काे उनका देहांत हाे गया लेकिन वे अपनी गद्दी अपने बेटे याेगी दिनेश नाथ भगत काे दे गए थे. याेगी दिनेशनाथ भगत ने बताया कि किसी विवाद के चलते पुरानी गाेगामाड़ी के सामने ही बब्याल में माड़ी का निर्माण करवाया. इस माड़ी के लिए वे उसी 1150 साल पुरानी बागड़ के मंदिर से ईंटे व 4 बुर्ज लेकर आए जिसका पुर्ननिर्माण 2018 में शुरू हुआ था. 2018 में ही वे वहां से ईटें व बुर्ज लेकर आए और माड़ी की नींव रखकर स्थापना की. इसमें बाबा की समाधि भी बनवाई.

पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही है परंपरा

हेमराज भगत ने बताया कि पिता दीनदयाल भगत ने छड़ियाें की परंपरा शुरू की थी. इसे अब हेमराज, उनके भतीजे ललित कुमार व भाई सतपाल निभा रहे हैं. उनके पास ठाकुर भगत, दीनदयाल व मंगतराम भगत की छड़ियां है. बांस बाजार में अपने निवास स्थान पर ही सावन शुरू हाेते ही छड़ियाें की पूजा शुरू कर देते हैं. राखी से गाेगानवमी तक घर में छड़ियाें काे रखकर उनकी पूजा करते हैं. राखी वाले दिन छड़ियाें काे ले जाकर खेड़े पर माथा टिकवाते है.

22 से 26 अगस्त तक लगेगा मेला

बब्याल गाेगा माड़ी कमेटी के पूर्व प्रधान राजबीर राणा ने बताया कि बब्याल की पुरानी गाेगा माड़ी काे बागड़ हुनमानगढ़ से ईंटें व ज्याेति लाकर निर्माण करवाया गया था. हर साल राखी के अगले दिन भादवे के महीने में मेले का आयाेजन किया जाता है. इस मेले में बाबा का माथा टेकने के लिए गांव के 4 पट्टी के परिवार के निशान या छड़ियां, तीन निशान एसी व बीसी वाले लेकर आते हैं.

उन्हाेंने बताया कि पहली माड़ी दूधली में, दूसरी राजस्थान में व तीसरी बब्याल में बनी थी. राखी के अगले दिन 23 से 26 काे मेले का आयाेजन किया जा रहा है. लगभग 250 निशान जिसमें से 7 निशान सुरेंद्र भगत, पदम भगत, सुभाष भगत, राेशन भगत, राजू भगत, अमर भगत, काका भगत की पीढ़ी दर पीढ़ी निशान या छड़ी लेकर माड़ी पर चढ़ते हैं. इस पुरानी माड़ी काे बब्याल गाेगा माड़ी कमेटी देखरेख कर रही है इसमें राजबीर राणा पूर्व प्रधान, कैशियर जयभगवान राणा, प्रमाेद कुमार सेक्रेटरी, उपप्रधान विशाल कुमार उर्फ दीपू हैं.

नदी माेहल्ला की 110 साल पुरानी गाेगा माड़ी

सिटी के नदी माेहल्ला में प्राचीन जाहरवीर गाेगा महाराज की गाेगा माड़ी है. भगत हेमराज गुप्ता ने बताया कि लगभग 110 साल पुरानी गाेगा माड़ी है. भगत जेठुराम ने इसे बनवाया था. पहले यह माड़ी छड़ियाें वाले बेड़े में हुआ करती थी. फिर इसे यहां पर बनवा दिया गया. जेठुराम के बाद भगत छाेटे लाल हुए, उसके बाद उनके शिष्य मंगत राम ने संभाला. फिर मंगतराम के शिष्य दीनदयाल ने इनकाे संभाला. फिर भगत टंकू राम सैनी आते थे. ठाकुर भगत और नाहन हाउस से हजूरा राम भगत आया यहां पर आया करते थे. अब इस माड़ी पर काे सेवादार श्याम लाल भगत संभाल रहे हैं. 

50 साल पहले भगत ने बनवाई माड़ी

राम बाग राेड कैंट में भगत रूलड़ा राम ने माड़ी बनवाई थी. 50 पहले इस माड़ी की शुरुआत की गई थी. दाे महीने पहले भगत रुलड़ा राम के देहांत के बाद बच्चे अनिता, राकेश, अशाेक, मनाेज कुमार व राजेश कुमार माड़ी काे संभाल रहे हैं. सेवादार अनिता ने बताया कि जिसकी माड़ी हाेती है वे छड़ी नहीं उठाते. राखी के अगले दिन छड़ियां लेकर लाेग माड़ी पर माथा टेकने के लिए आते हैं. छड़ियाें काे नारियल के गुट, कपड़े, माेरपंखी, चांदी का कलश, पन्नियाें आदि से सजाया जाता है. इसे सजाने में 20 से 25 हजार की खर्च आता है.

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