नई दिल्ली | ईंधन की रिकार्ड तोड़ कीमतों से हालिया दिनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग में तेजी देखने को मिल रही है. हालांकि पेट्रोल- डीजल के वाहनों के मुकाबले अभी भी इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या का आंकड़ा उतना अधिक नहीं है क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत काफी ज्यादा है. जिसके चलते बहुत से लोग मन होते हुए भी इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने में सक्षम नहीं है.
लेकिन इन सबके बीच एक उम्मीद भरी खबर सामने आई है कि आने वाले दिनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत में तेजी से गिरावट देखने को मिलेगी. दरअसल ऑटो कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहन में लीथियम बैटरी की जगह Sodium Ion Battery का इस्तेमाल करने की तैयारी कर काम कर रही है. इस बैटरी का इस्तेमाल होते ही इलेक्ट्रिक वाहनों की लागत बहुत ही कम हो जाएगी जिसका सीधा- सीधा फायदा आमजन को पहुंचेगा.
लीथियम के मुकाबले काफी सस्ती सोडियम बैटरी
बता दें कि इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ने से जहां साल 2012 में लीथियम बैटरी की कीमत करीब 4800 डॉलर प्रति टन थी,वही कीमत आज बढ़कर 85 हजार डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है. वहीं, सोडियम हाइड्रॉक्साइड की कीमत करीब 900 डॉलर प्रति टन है यानि लीथियम बैटरी से करीब 100 गुणा कम. वहीं साथ ही भारत समेत दुनिया भर में सोडियम का भंडार लीथियम की तुलना में सैकड़ों गुणा अधिक है. यानि सस्ता होने के साथ प्रचुर मात्रा में उपलब्धता इसे भविष्य का पावर हाउस बना सकता है.
इलेक्ट्रिक वाहन कितने सस्ते होंगे
एक ऑटो एक्सपर्ट ने बताया कि किसी भी इलेक्ट्रिक वाहन की लागत में बैटरी का खर्च लगभग 50 प्रतिशत है. यानि 5 लाख रुपये की अगर गाड़ी है तो उसमें बैटरी की लागत 2 से 2.5 लाख रुपये हैं. अब लीथियम के मुकाबले सोडियम बैटरी की कीमत को देंखे तो यह करीब 100 गुना तक सस्ता है. यानि अगर इसका इस्तेमाल कार में शुरू हो जाएगा तो गाड़ी की कीमत 5 लाख रुपए से घटकर 3 लाख रुपए तक हो जाएगी.
कब तक इस्तेमाल हो सकता है शुरू
एक्सपर्ट का कहना है कि भले ही दुनिया भर में सोडियम की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में हो लेकिन इसका इस्तेमाल एकदम से शुरू करना मुश्किल काम होगा. इसकी वजह यह है कि लीथियम की तुलना में सोडियम आयन बैटरी कम ऊर्जा स्टोर करती है. इसके चलते कार में बड़ी बैटरी लगानी होगी, जिससे गाड़ी के वजन में बढ़ोतरी हो जाएगी, जोकि बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं होगा. इसके अलावा लीथियम आयन बैटरी की तुलना में सोडियम बैटरी की लाइफ भी कम होती है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अभी लंबा रिसर्च करना पड़ेगा, जिसमें कई साल का समय लग सकता है.
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