हरियाणा में भी दिखेगा ऐतिहासिक महिला आरक्षण बिल का असर, लोकसभा और विधानसभा में इतनी सीटों पर मिलेगा आरक्षण

चंडीगढ़ | केन्द्र की मोदी सरकार ने नई संसद में ऐतिहासिक महिला आरक्षण बिल “नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल- 2023” पेश किया. इस बिल के पारित होने पर हरियाणा विधानसभा और लोकसभा की एक अलग ही तस्वीर देखने को मिलेगी. हरियाणा की विधानसभा में महिलाओं के लिए 30 और लोकसभा में 3 सीटें आरक्षित हो जाएंगी. हालांकि, मोदी सरकार के इस बिल का लाभ साल 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में नहीं मिल पाएगा.

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परिसीमन के बाद बदल जाएगी तस्वीर

लोकसभा और विधानसभा सीटों के लिए साल 2026 में परिसीमन होना है. वर्तमान में हरियाणा में लोकसभा की 10 और विधानसभा की 90 सीटें हैं. परिसीमन में आबादी के हिसाब से लोकसभा की 3 सीटें बढ़ेंगी तो कुल 13 लोकसभा सीटें हो जाएंगी जिनमें से 4 सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी. वहीं, विधानसभा की सीटें बढ़कर 117 होंगी जिनमें से 39 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेगी.

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कोई खास नहीं रहा महिलाओं के लिए राजनीतिक दृष्टिकोण

राजनीतिक दृष्टिकोण पर नजर डालें तो हरियाणा में महिलाओं के लिए कोई खास नहीं रहा है. पिछले 45 साल में केवल 6 महिलाएं ही लोकसभा में पहुंच पाई है और सबसे अहम बात यह है कि कोई भी निर्दलीय महिला प्रत्याशी लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाई है.

वहीं 6 लोकसभा सीटें करनाल, रोहतक, हिसार, फरीदाबाद, गुरुग्राम और सोनीपत से एक भी महिला प्रत्याशी संसद में नहीं पहुंच पाई है. कांग्रेस की चंद्रावती, कुमारी सैलजा और श्रुति चौधरी, भाजपा (BJP) की सुधा यादव और सुनीता दुग्गल और INLD की कैलाशो सैनी ही हरियाणा गठन के बाद लोकसभा में पहुंच पाईं हैं.

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सीएम मनोहर लाल की प्रतिक्रिया

ऐतिहासिक महिला आरक्षण बिल पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सीएम मनोहर लाल ने कहा कि जब हमने पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया तब से यह सुगबुगाहट जोर पकड़ रही थी कि लोकसभा और विधानसभा में ये कब होगा. मोदी सरकार का यह फैसला सराहनीय है. निश्चित रूप से इससे महिलाओं का सशक्तिकरण बढ़ेगा.

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धनखड़ ने गोडे-गोडे चा फिल्म का दिया उदाहरण

हरियाणा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने महिला आरक्षण बिल की सराहना करते हुए कहा कि एक पंजाबी फिल्म है, जिसका नाम गोडे-गोडे चा है, इसकी थीम है कि महिलाओं को बारात में जाने की इजाजत नहीं है लेकिन वह जाने के लिए संघर्ष करती हैं और सफलता हासिल होती है. पुराने जमाने में देश के कई हिस्सों में इस तरह की परंपरा रही है.

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