चंडीगढ़ | सतलुज-यमुना लिंक (SYL) के मामले में पंजाब के सीएम भगवंत मान और हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर के बीच आज दिल्ली में हुई बैठक भी बेनतीजा रही. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की मौजूदगी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच मध्यस्थता बैठक हुई. इसमें सीएम भगवंत मान ने पंजाब का पक्ष मजबूती से रखा और दोहराया कि राज्य में जरूरत से ज्यादा पानी नहीं है. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी दोनों सीएम के बीच सहमति नहीं बना सके.
नहीं दिया जा सकता पानी : मान
सीएम मान ने कहा कि हरियाणा को सतलुज का पानी नहीं दिया जा सकता. उन्होंने एसवाईएल की जगह वाईएसएल बनाने की बात कही ताकि यमुना से सतलुज को पानी दिया जा सके. मान ने साफ किया कि हरियाणा सरकार की तर्ज पर पंजाब सरकार भी सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखेगी. उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार राज्य के मौजूदा हालात से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएगी. पंजाब में सरप्लस पानी नहीं होने का जिक्र करते हुए मान ने कहा कि राज्य का भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है.
क्या है एसवाईएल समझौता
एसवाईएल समझौता 42 साल पहले 1981 में पंजाब और हरियाणा के बीच हुआ था लेकिन जब समय पर इसके मुताबिक काम नहीं हुआ तो दोनों राज्यों के बीच विवाद बढ़ गया. एसवाईएल के मुद्दे पर दोनों राज्यों को 19 जनवरी को कोर्ट में जवाब दाखिल करना है इसीलिए आज यह मध्यस्थता बैठक बुलाई गई. इससे पहले अक्टूबर में पंजाब के सीएम भगवंत मान और हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर के बीच हरियाणा के सीएम आवास पर बैठक हुई थी लेकिन यहां भी भगवंत मान ने यह कहकर नहर बनाने से मना कर दिया कि पंजाब में पानी की अधिकता नहीं है.
सीएम भगवंत मान ने अक्टूबर में हुई बैठक के बाद कहा था कि हरियाणा को पानी की व्यवस्था के लिए पीएम नरेंद्र मोदी से अपील करनी चाहिए. मान के मुताबिक, 1981 में हुआ एसवाईएल समझौता 42 साल बाद लागू नहीं हो सकता क्योंकि पंजाब का भूजल स्तर नीचे चला गया है. उन्होंने दावा किया कि पहले पंजाब में 42.2 लाख फुट पानी था और अब इसमें कुल 122.4 लाख एकड़ पानी है. हरियाणा में 14.10 मिलियन फीट पानी है. अन्य नदियों का पानी भी हरियाणा के पास है जिसे किसी खाते में नहीं रखा गया है. पंजाब के सीएम भगवंत मान ने बताया कि पंजाब सिर्फ 27 फीसदी नदियों, नालों और नहरों का इस्तेमाल कर रहा है जबकि 73 फीसदी पानी धरती से निकाला जा रहा है. 1,400 किमी नहरें, नदियां बंद कर दी गई हैं. मान ने एसवाईएल मामले को सिर्फ राजनीति के लिए इस्तेमाल करने की बात कही.
एसवाईएल नहर का पूरा विवाद
पंजाब ने 18 नवंबर 1976 को हरियाणा से 1 करोड़ रुपये लेकर 1977 में एसवाईएल निर्माण की मंजूरी दी. बाद में पंजाब ने एसवाईएल नहर के निर्माण को लेकर अनिच्छा दिखानी शुरू कर दी.
1979 में एसवाईएल के निर्माण की मांग को लेकर हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. पंजाब ने 11 जुलाई 1979 को सुप्रीम कोर्ट में पुनर्गठन अधिनियम की धारा 78 को चुनौती दी.
1980 में पंजाब सरकार की बर्खास्तगी के बाद 1981 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की उपस्थिति में दोनों राज्यों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. 1982 में इंदिरा गांधी ने पटियाला के गाँव कपूरी में एक टक लगाकर नहर का निर्माण शुरू किया.
इसके विरोध में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने एसवाईएल की खुदाई के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौता हुआ जिसमें पंजाब नहर के निर्माण पर सहमति बनी.
1990 में 3 जुलाई को एसवाईएल के निर्माण में शामिल दो इंजीनियरों की भी हत्या कर दी गई थी. हरियाणा के तत्कालीन सीएम हुकम सिंह ने केंद्र सरकार से मांग की थी कि निर्माण का काम बीएसएफ को सौंपा जाए.
1996 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को 2002 तक एक साल में एसवाईएल नहर बनवाने का निर्देश दिया.
2015 में हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई के लिए संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया.
2016 में गठित 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने पहली सुनवाई के दौरान सभी पक्षों को बुलाया था.
दूसरी सुनवाई में 8 मार्च को पंजाब में 121 किलोमीटर लंबी नहर को पाटने का काम शुरू हुआ. 19 मार्च तक सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति का आदेश दिया और नहर को पाटने का काम रोक दिया.
2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर दोनों राज्य नहर नहीं बनाते हैं तो कोर्ट खुद नहर का निर्माण करवाएगा. अभी 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों को नोटिस जारी किया है.
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