चंडीगढ़ । हरियाणा कांग्रेस पर पिछले 15 साल से दलित ‘राज’ चल रहा है और एक बार फिर दलित नेता को प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपी गई है. नए प्रदेश अध्यक्ष उदयभान दलित नेता हैं और हुड्डा के करीबी हैं. दूसरी ओर गांधी परिवार के करीबी भी हुड्डा के सामने नहीं टिकते. इस बार भी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद के चयन में हुड्डा अपने प्रतिद्वंद्वी गुटों पर हावी रहे. लेकिन वह अपने समर्थक पूर्व विधायक उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाने में सफल रहे. उदयभान कृभको के अध्यक्ष और होडल-हसनपुर दोनों विधानसभा क्षेत्रों से चार बार विधायक रह चुके हैं.
आया राम गया राम प्रसिद्ध मुहावरा
उदयभान गया लाल के पुत्र हैं, जिनके कारण आया राम, गया राम का मुहावरा हरियाणा में प्रसिद्ध हुआ था. आया राम गया राम का मुहावरा 1967 में उस वक्त मशहूर हुआ जब हरियाणा के हसनपुर (आरक्षित) विधानसभा के एक निर्दलीय विधायक गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली.
लोकदल की टिकट पर लड़ा पहला चुनाव
उदय भान की पत्नी का नाम शकुंतला देवी है और उनके चार बच्चे हैं. उदय भान ने अपनी स्कूली शिक्षा होडल से ही पूरी की जिसके बाद उन्होंने बी.ए. 1974 में बृज मंडल कॉलेज होडल से दूसरा साल पूरा किया. 1987 में पहली बार उदय भान ने लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.1987 से 1991 तक वे हसनपुर विधानसभा से विधायक रहे. इसके साथ ही वे दिसंबर 1989 से मई 1993 तक उदय भान कृभको के अध्यक्ष भी रहे.
राजनीतिक यात्रा
वर्ष 2000 में उन्होंने एक बार फिर से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में हसनपुर विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 2000 से 2005 तक विधायक रहे. वर्ष 2005 में उन्होंने एक बार फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर होडल विधानसभा से चुनाव लड़ा और चौथी बार भी जीत दर्ज की. वर्ष 2014 से 2019 तक वे हरियाणा विधानसभा के सदस्य रहे, जिसके बाद 2019 में उन्होंने एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार उन्हें भाजपा की लहर में हार का सामना करना पड़ा. भाजपा प्रत्याशी जगदीश नायक से उन्हें मुंह की खानी पड़ी.
15 सालों तक ये रहे हैं दलित चेहरा
बता दें कि इससे पहले पिछले 15 सालों से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दलित नेता बन रहे हैं. इन 15 वर्षों में तीन प्रदेश अध्यक्ष रहे, लेकिन सबसे अधिक समय तक हुड्डा के करीबी रहे मूलचंद मुलाना ही इस पद पर रहे.वह 27 जुलाई 2007 को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने और करीब 6 साल 5 महीने तक इस पद पर रहे. जबकि गांधी परिवार के करीबी नेता इन पदों पर टिके नहीं रह सके.
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