हरियाणा सरकार पराली जलाने को लेकर पहले ही हुई सतर्क, उठाए ये कदम

चंडीगढ़ । हर साल किसानों द्वारा पराली जलाने की वजह से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा अधिक बढ़ जाती है. जिस वजह से शहरी क्षेत्रों में इसके प्रदूषण का ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है. सरकार द्वारा पराली जलाने की रोकथाम के लिए कई प्रयास भी किए जाते हैं ताकि पराली से निकलने वाले धुएं की वजह से वातावरण प्रदूषित ना हो, और इसके दुष्परिणामों से बता सके.

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मुख्य सचिव ने क्या कहा

पराली जलाने को लेकर हरियाणा सरकार पहले ही सतर्क हो गई है. हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल ने आने वाले सीजन को देखते हुए इस दिशा में काम शुरू कर दिया है. इसके तहत उन्होंने फसल अवशेषों के बेहतर प्रबंधन के लिए कार्य योजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने एक्स सीटू प्रबंधन के लिए मौजूदा प्रौद्योगिकियों के अलावा नई प्रौद्योगिकियों और परियोजनाओं की संभावनाओं का पता लगाने का भी आदेश दिया है.

हालातों से निपटने के लिए उठाए यह कदम

पराली जलाने को लेकर बैठक के दौरान मुख्य सचिव ने कहा कि पूर्व में पराली जलाने के मामले में कमी आई है. ऐसे में और अधिक प्रयास करने की जरूरत है ताकि लोग पराली न जलाएं और इसका बेहतर प्रबंधन किया जा सके.साथ ही ग्राम स्तर पर समितियां गठित करने को भी कहा ताकि जमीनी स्तर पर पराली जलाने पर नजर रखी जा सके. इसके अलावा कई जागरूकता कार्यक्रम चलाने के भी निर्देश दिए ताकि किसानों को यह समझाया जा सके कि पराली जलाने से क्या नुकसान होता है. सीटू प्रबंधन को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए भी इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं. इसके साथ ही नए प्रकार के प्रबंधन पर भी शोध किया जा रहा है ताकि पराली का बेहतर प्रबंधन किया जा सके.

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बैठक के दौरान मुख्य सचिव ने प्रदेश में बायोमास एनर्जी प्लांट, एथनॉल प्लांट और कंप्रेस्ड बायोगैस प्लांट के संबंध में भी निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि उन्हें बेहतर बनाने की जरूरत है और सहकारी चीनी मिलों की संख्या बढ़ाने के लिए उनकी लागत का अध्ययन करने के भी निर्देश दिए हैं.साथ ही इससे बड़ी मात्रा में पराली की खपत को बढ़ावा मिलेगा.

गौरतलब है कि विभाग किसानों को एक्स-सीटू प्रबंधन के लिए स्ट्रॉ स्लेशर, श्रेडर, हे-रेक और स्ट्रॉ बेलर जैसे विभिन्न उपकरणों के लिए सब्सिडी दे रहा है. वर्ष 2021 के दौरान किसानों को एक्स सीटू प्रबंधन के लिए सब्सिडी पर 449 स्ट्रॉ बेलर प्रदान किए गए. इस वर्ष के लिए 26 औद्योगिक इकाइयों ने 4.25 लाख मीट्रिक टन पराली की आवश्यकता दर्ज की है.

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बायोमास प्रोजेक्ट किए गए स्थापित

बैठक में यह भी बताया गया कि पराली की खपत के लिए बायोमास प्रोजेक्ट स्थापित किए गए हैं. वर्तमान की बात करें तो इस समय 11 परियोजनाएं चल रही हैं, जिनमें से 4.48 लाख मीट्रिक टन पराली का उपयोग किया जा रहा है. वर्ष 2022-23 में 6.43 लाख मीट्रिक टन को समाहित करने का प्रयास किया जा रहा है. इसके अलावा दो और बायोमास बिजली परियोजनाओं और एक एथेनॉल प्लांट का काम भी जुलाई 2022 में पूरा कर लिया जाएगा.इन संयंत्रों के पूरा होने के बाद 4.26 लाख मीट्रिक टन पराली का इस्तेमाल किया जाएगा.

क्यों उठाए जा रहे हैं कदम

आपकी जानकारी के लिए बता दिया जाए कि पराली जलाने की वजह से वातावरण प्रदूषित होता है, जिससे लोगों को सांस लेने में भी कठिनाई होती है. ऐसा भी कहा जाता है कि इससे सांस संबंधित बीमारी भी उत्पन्न होती है, जो सेहत के लिए बहुत ही हानिकारक होती है.सरकार द्वारा पराली जलाने को लेकर कई नियम भी बनाए गए हैं और कई राज्यों में यह नियम लागू भी होते हैं. मगर फिर भी किसान सरकार की नियमों की अनदेखी करते हुए पराली जलाना जारी रखते हैं, जिससे वातावरण प्रदूषित होता रहता है.

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बता दें कि पराली जलाने की वजह से जब इसका धुआं शहरी क्षेत्रों में जाता है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान देखने को मिलता है क्योंकि शहरी क्षेत्रों में वैसे ही मोटर वाहनों का धुंआ वातावरण को प्रदूषित करता है, दूसरा जब पराली का धुआं भी मोटर वाहनों के धुएं के साथ आपस में मिलता है तो वातावरण बहुत अधिक विषैला हो जाता है जिससे सांस लेने की तकलीफ तो बिल्कुल लाजमी हो जाती है. साथ ही और भी बीमारियों को आमंत्रण मिलता है, और आंखों में भी जलन सी महसूस होती है आप सोच सकते हैं ये मानव शरीर के लिए कितना विनाशकारी साबित होता है.

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