हरियाणा सरकार का बड़ा फैसला, सोमवार को सभी स्कूल व कॉलेजो में छुट्टी घोषित

चंडीगढ़ | 28 नवंबर यानी सोमवार को हरियाणा के सभी सरकारी संस्थान और शिक्षण संस्थान बंद रहेंगे. हरियाणा सरकार ने 28 नवंबर को गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस मनाने का आदेश जारी किया है. इस अवसर पर राज्य सरकार के सभी सरकारी कार्यालयों, बोर्ड निगमों और शैक्षणिक संस्थानों में सोमवार, 28 नवंबर को अवकाश रहेगा.

School Holidays

इस संबंध में एक अधिसूचना हरियाणा सरकार के मुख्य सचिव द्वारा जारी की गई है. बता दें कि रेस्ट्रिक्टेड हॉलीडे वह अवकाश होता है, जिसमें कोई भी संस्था या कंपनी अपनी इच्छा के अनुसार उस दिन कार्यालय खोल सकती है लेकिन आमतौर पर इस दिन ज्यादातर ऑफिस बंद रहते हैं.

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कौन थे गुरु तेग बहादुर

गुरु तेग बहादुर सिंह क्रांतिकारी युग पुरुष थे. उनका जन्म वैशाख कृष्ण पंचमी को अमृतसर, पंजाब में हुआ था. धर्म और मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहिब का स्थान विश्व इतिहास में अद्वितीय है. तेग बहादुर सिंह सिखों के नौवें गुरु थे. तेग बहादुर का बचपन का नाम त्यागमल था. उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह था. वे बाल्यकाल से ही गम्भीर चिन्तनशील, उदारचित्त, वीर और निडर स्वभाव के थे.

उन्होंने गुरुवाणी, शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्र और घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की. हरिकृष्ण राय जी (सिखों के 8वें गुरु) की अकाल मृत्यु के कारण गुरु तेग बहादुर जी को गुरु बनाया गया. मात्र 14 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पिता के साथ मुगलों के आक्रमण के विरुद्ध युद्ध में वीरता का परिचय दिया. उनकी इस वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम तेग बहादुर यानी तलवार का धनी रख दिया.

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गुरु तेग बहादुर सिंह जहां भी गए, उनसे प्रेरित होकर लोगों ने न केवल नशा छोड़ा बल्कि तंबाकू की खेती भी छोड़ दी. उन्होंने देश को दुष्टों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए जनता के मन में विरोध की भावना पैदा कर बलिदान के लिए तैयार किया और मुगलों के नापाक मंसूबों को नाकाम करते हुए खुद को कुर्बान कर दिया. गुरु तेग बहादुर सिंह जी द्वारा रचित बानी के 15 रागों में 116 शब्द (श्लोक सहित) श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं. सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर सिंह ने अपने युग के शासक वर्ग की क्रूर और मानवता विरोधी नीतियों को कुचलने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. इस अवस्था को केवल ब्रह्मज्ञानी साधक ही प्राप्त कर सकता है. मानवता के शिखर पर वही मनुष्य पहुंच सकता है, जिसने ‘दूसरों में स्वयं’ को पा लिया हो.

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