चंडीगढ़ | हरियाणा में मुख्यमंत्री नायब सैनी के नेतृत्व वाली BJP सरकार के मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा हो चुका है. हरियाणा सरकार के मंत्रालयों की बात करें, तो वित्त मंत्रालय के साथ एक अजीबीगरीब मिथक जुड़ा हुआ है. वित्त मंत्री की कुर्सी पर जो भी विधायक बैठा है, उसे अगले चुनाव में जीत नसीब नहीं हुई है.
वित्त मंत्रालय बना अशुभ
हरियाणा सरकार में वित्त मंत्रालय की कुर्सी को हाल के दशकों में अशुभ माना गया है. पिछले 8 वित्त मंत्रियों की बात करें, तो उन्हें अपने अगले चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा है. यह सिलसिला पिछले तीन दशकों से चला आ रहा है, जिससे यह धारणा बन गई है कि वित्त मंत्रालय को संभालना एक चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी है.
पिछले 8 वित्त मंत्रियों का इतिहास
मांगेराम गुप्ता: 1991 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर वित्त मंत्री बने मांगेराम गुप्ता को अगले चुनाव में जीत नसीब नहीं हुई.
किशन दास: 1996 में वित्त मंत्री बने किशन दास भी अगले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पाए. उनके हारने से इस धारणा को और मजबूती मिली कि वित्त मंत्री पद पर रहना चुनावी सफलता के लिए अशुभ हो सकता है.
संपत सिंह: साल 2000 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की सरकार में वित्त मंत्री बने संपत सिंह भी इस मिथक को नहीं तोड़ पाए.
वीरेंद्र सिंह: 2005 में तत्कालीन भुपेंद्र हुड्डा सरकार में वित्त मंत्री बने वीरेंद्र सिंह को भी अगले चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था.
अजय यादव: 2009 की तत्कालीन भुपेंद्र हुड्डा सरकार में कैप्टन अजय यादव को वित्त मंत्री बनाया गया था, लेकिन उन्हें भी अगले विधानसभा चुनाव में हार झेलनी पड़ी थी.
कैप्टन अभिमन्यु: 2014 में तत्कालीन मनोहर लाल खट्टर सरकार में वित्त मंत्री बने कैप्टन अभिमन्यु भी अगले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने सफल नहीं हुए.
मनोहर लाल खट्टर: 2019 में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने खुद वित्त मंत्रालय अपने पास रखा, लेकिन उन्हें इसी साल लोकसभा चुनाव से पहले सीएम कुर्सी को अलविदा कहना पड़ा था.
जेपी दलाल: मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री पद से हटने पर सीएम नायब सैनी की सरकार में वित्त मंत्री बने जेपी दलाल को भी पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है.
मुख्यमंत्री के पास वित्त मंत्रालय
सीएम नायब सैनी ने इस बार वित्त मंत्रालय अपने पास रखा है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह धारणा बदलेगी या फिर वित्त मंत्री बनने के बाद अगले चुनाव में मिलने वाली हार का सिलसिला ऐसे ही बदस्तूर जारी रहेगा. मुख्यमंत्री नायब सैनी क्या इस मिथक को तोड़ पाएंगे, यह सब 2029 के विधानसभा चुनाव में पता चलेगा.
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