चंडीगढ़ | लोकसभा चुनावों की गहमा- गहमी के बीच हरियाणा की राजनीति में सियासी भूचाल मचा हुआ है. 3 निर्दलीय विधायकों द्वारा बीजेपी की नायब सैनी सरकार से समर्थन वापस लेने पर विपक्षी दल सरकार के अल्पमत में होने का दावा कर रहे हैं. कांग्रेस विधायक और चीफ व्हिप बीबी बत्रा ने भी दावा करते हुए कहा है कि बीजेपी सरकार के अल्पमत में होने के लिए विपक्षी दलों के 45 विधायकों के पत्र राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय तक पहुंच चुके हैं.
राज्यपाल को लिखी चिट्ठी में दावा किया गया है कि कांग्रेस पार्टी के 30, JJP के 10, इनेलो से 1 और महम हल्के से 1 निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू फ्लोर टेस्ट की मांग कर चुके हैं. हालांकि यह अलग बात है कि जजपा के 4 विधायक खुले तौर पर पार्टी से बग़ावत कर चुके हैं लेकिन JJP की ओर से दुष्यंत चौटाला ने राज्यपाल को पत्र लिखा है.
BJP के 39 विधायकों को ही वोटिंग का अधिकार
3 निर्दलीय विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने पर हरियाणा विधानसभा में बीजेपी के 40 विधायक बचे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर विधायक पद से इस्तीफा दे चुके हैं. इसके बीच में हरियाणा में राजनीतिक विश्लेषक और कानूनविद हेमंत का कहना है कि विधानसभा में BJP के पास संवैधानिक रूप से प्राथमिक तौर पर 39 ही विधायक हैं.
उन्होंने बताया कि नायब सैनी सरकार के पक्ष में (अगर विश्वास प्रस्ताव हो) और विरोध में (अगर अविश्वास प्रस्ताव हो) तो 40 में से 39 विधायक ही वोटिंग कर सकते हैं. इसके पीछे की वजह यह है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 189 (1) के अनुसार विधानसभा स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता केवल सदन में किसी प्रस्ताव पर वोटों की संख्या बराबर होने की परिस्थिति में ही अपना निर्णायक मत (कास्टिंग वोट) दे सकते हैं.
विधानसभा में ही होगा साबित
पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल और निर्दलीय विधायक रणजीत चौटाला के इस्तीफे के बाद हरियाणा विधानसभा में 88 विधायक हैं. नायब सैनी सरकार की ओर से दावा करते हुए कहा गया है कि उनके पास बहुमत है लेकिन वर्तमान में कुल 43 विधायकों का ही समर्थन सरकार के पास दिख रहा है.
लेकिन क्या सरकार वास्तव में अल्पमत में आ चुकी है, वह विधानसभा में वोटिंग के दौरान ही साबित हो सकता है क्योंकि सदन में विश्वास प्रस्ताव अथवा विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान हुई वोटिंग में पार्टी व्हिप जारी होने के बावजूद एवं दल-बदल विरोधी कानून में सदन की सदस्यता से अयोग्यता का खतरा होने बावजूद विपक्षी दल के विधायक न केवल सदन से अनुपस्थित रह सकते हैं बल्कि अपनी पार्टी के खिलाफ क्रॉस वोटिंग भी कर सकते हैं.
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