SYL मुद्दे पर 57 साल से पंजाब-हरियाणा आमने सामने, यहां जानें कब क्या हुआ

चंडीगढ़ | दिल्ली में सतलुज-यमुना लिंक (SYL) को लेकर हरियाणा और पंजाब के बीच बुधवार को हुई तीसरी बैठक भी बेनतीजा रही. बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत की लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दो टूक कह दिया कि वह हरियाणा को एक बूंद पानी भी नहीं देंगे.

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57 साल से बनी है दोनों राज्यों में टकराव की स्थिति

57 साल से हरियाणा-पंजाब एसवाईएल के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है. 57 साल में पंजाब ने एसवाईएल पर सात बार (1967, 1970, 1978, 1986, 2014) और हरियाणा ने 2000 से अब तक 5 बार विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया है. सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण का मामला भी सदन में चला. सुप्रीम कोर्ट और कोर्ट ने भी पंजाब सरकार को नहर बनाने के आदेश जारी किए थे लेकिन पंजाब ने नहर बनाने के बजाय नहर को पाट दिया और विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर किसानों को जमीन वापस कर दी. राजनीतिक कारणों से यह विवाद अब तक बना हुआ है. आइए जानते हैं……..

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रावी और ब्यास नदियों के जल प्रवाह का आकलन हरियाणा बनने के एक दशक पहले किया गया था. आकलन में पाया गया कि रावी-व्यास नदी में वार्षिक जल प्रवाह 15.85 मिलियन एकड़ फीट (MAF) है. इस आकलन के आधार पर केंद्र सरकार ने वर्ष 1955 में राजस्थान, अविभाजित पंजाब और जम्मू-कश्मीर के पानी को विभाजित किया. इस वितरण के अनुसार, राजस्थान को प्रति वर्ष 8 एमएएफ, अविभाजित पंजाब को 7.20 एमएएफ और 0.65 एमएएफ प्रति वर्ष जम्मू और कश्मीर को देने का निर्णय हुआ.

1966 में हरियाणा नया राज्य बना

1 नवंबर 1966 को हरियाणा पंजाब से अलग होकर एक नया राज्य बना. इसके बाद, केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर पंजाब के हिस्से में आने वाले 7.20 एमएएफ पानी में से 3.5 एमएएफ हरियाणा को आवंटित कर दिया लेकिन पंजाब सरकार ने इस संबंध में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया. वर्ष 1981 में रावी-व्यास नदी का पुनः मूल्यांकन किया गया. इस बार बढ़े हुए 17.17 एमएएफ में से पंजाब को 4.22 एमएएफ, हरियाणा को 3.5 एमएएफ और राजस्थान को 8.6 एमएएफ देने का निर्णय लिया गया.

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इंदिरा गांधी और लोंगोवाल के बीच समझौता

आवंटित पानी हरियाणा को चला गया इसलिए 8 अप्रैल 1982 को तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने पटियाला (पंजाब) के कपूरी गांव में एक भव्य समारोह के साथ एसवाईएल नहर के निर्माण का शुभारंभ किया. 214 किमी में से 122 किमी पंजाब में और 92 किमी हरियाणा में बनाई जानी थी लेकिन पंजाब में अकालियों ने नहर के निर्माण का विरोध करना शुरू कर दिया और कपूरी मोर्चा का गठन किया. इसके बाद, साल 1985 में पीएम इंदिरा गांधी और अकाली दल के प्रमुख संत हरचंद सिंह लोंगोवाल ने पानी के आकलन के लिए नया ट्रिब्यूनल बनाने पर सहमति जताई.

एराडी ट्रिब्यूनल ने पंजाब को 5 एमएएफ देने की सिफारिश की

एराडी ट्रिब्यूनल का गठन सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी बालकृष्ण एराडी के नेतृत्व में किया गया था. 1987 में, ट्रिब्यूनल ने एमएएफ को पंजाब में 4.22 एमएएफ से बढ़ाकर 5 एमएएफ करने की सिफारिश की. साथ ही हरियाणा को पंजाब से 3.83 एमएएफ पानी देने को कहा.

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लोंगोवाल की हत्या और उग्रवाद

लोंगोवाल और गांधी के बीच समझौते के एक महीने के भीतर 20 अगस्त 1985 को आतंकवादियों ने लोंगोवाल की हत्या कर दी. इसके बाद, वर्ष 1990 में नहर निर्माण में लगे मुख्य अभियंता एमएल सेकरी व अधीक्षण अभियंता अवतार सिंह औलख की हत्या कर दी गयी. इसके अलावा, रोपड़ के पास मजात गांव में भी मजदूरों की हत्या कर दी गई. इन हत्याओं के बाद नहर निर्माण का काम रुक गया. इन घटनाओं के चलते पंजाब के नेताओं ने केंद्र सरकार को अलर्ट किया और इस मुद्दे को दोबारा न उठाने की सलाह दी.

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