चंडीगढ़ | चार साल पहले हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) की तरफ से ग्रुप डी के लगभग 18,000 पदों पर चयन किया था. जनवरी 2019 में जारी इस सूची से ऐसा माहौल पैदा हुआ कि जींद उप चुनाव में BJP उम्मीदवार भारी बहुमत से विजयी हुए. इस भर्ती में 10 फीसदी पद खिलाड़ियों के लिए रिजर्व थे. विज्ञापन संख्या 04/ 2018 की कैटेगरी नंबर एक के विरुद्ध ग्रुप डी की पदों में से ESP (एलिजिबल स्पोट्र्स पस) कोटे के 1,518 पदों पर भर्ती हुई थी.
सर्टिफिकेट जमा नहीं कराने वाले उम्मीदवारों को किया गया नौकरी से बाहर
इन 1,518 को नियुक्ति पत्र दे दिए गए थे मगर कुछ उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि जब विज्ञापन जारी किया गया था. उस समय 25 मई 2018 की खेल ग्रेडेशन सर्टिफिकेट पॉलिसी के मुताबिक सर्टिफिकेट जारी होने चाहिए थे. इस पर हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि 25 मई 2018 की पालिसी के तहत जारी होने वाले सर्टिफिकेट मान्य होंगे.
उससे पहले चयनित उम्मीदवारों को नियुक्ति दी जा चुकी थी. हाईकोर्ट के फैसले को अमलीजामा पहनाने के लिए हरियाणा सरकार ने फैसला किया कि 31 दिसंबर 2020 तक नियुक्त उम्मीदवार 25 मई 2018 की पालिसी के तहत जारी सर्टिफिकेट जमा कराएं. जिन उम्मीदवारों ने इस सर्टिफिकेट को जमा नहीं कराया उन्हें नौकरी से बाहर कर दिया गया.
ESP कोटे के 250 पद रह गए खाली
इससे जो पद रिक्त हुए हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग ने वेटिंग लिस्ट से उम्मीदवार चयनित कर सरकार को दें दिए. प्रदेश सरकार ने खेल विभाग को कहा कि सर्टिफिकेट जारी किए जाएं, इसके लिए समय बढ़ाया गया, व सूची की वैलिडिटी को भी बढ़ाया गया. इसके बावजूद, ईएसपी कोटे के लगभग 250 पद नहीं भर पाए. ये खिलाड़ी चार साल से मुख्यमंत्री मनोहर लाल, उनके मुख्य प्रधान सचिव डीएस ढेसी, मुख्य सचिव संजीव कौशल, तत्कालीन सचिव सामान्य प्रशासन आशिमा बराड़, वर्तमान मानव संसाधन के विशेष सचिव डॉ. आदित्य दहिया और हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग से निरंतर मिलते रहे.
सरकार ने किया केस को बंद
पिछले वर्ष मुख्य सचिव ने HSSC को पत्र भेजकर चयन सूची की वैधता 31 अगस्त 2022 तक बढ़ाते हुए कहा कि हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग 31 अगस्त तक नाम भेज दे. इस पर आयोग ने 10 अगस्त और 25 अगस्त 2022 को प्रदेश सरकार को पत्र लिखा कि पहले ही कुल विज्ञापित पदों का 10 फीसदी से ज्यादा नामों की सिफारिश कर दी है.
HSSC ने बताया कि ईएसपी कोटे की 1,518 सीटें थी, जिनमें 342 पद अभी भी खाली है. आयोग ने 31 अगस्त तक नाम नहीं भेजे और लिस्ट की वैलिडिटी खत्म हो गई. अब सरकार ने इस केस को बंद कर दिया है.
प्रमाण पत्रों की जाँच होती तो योग्य उम्मीदवारों का होता चयन
इन परेशान ईएसपी उम्मीदवारों ने बताया कि जींद उप चुनाव के चक्कर में बिना जांच कराए चयनित खिलाड़ियों को नियुक्तियां दे दी गई. यदि नियुक्ति से पहले इनके ग्रेडेशन सर्टिफिकेट की जांच हो जाती तो ऐसे फर्जी या अयोग्य प्रमाण पत्र वालों को नियुक्त नहीं किया जाता. खिलाड़ी कोटे से ये खिलाड़ी बाहर होते तो योग्य खिलाड़ियों को चयनित किया जाता.
बाद में प्रमाण पत्र सही नहीं होने के कारण उन्हें हटा दिया तो फिर योग्य को उनके स्थान पर जगह मिलनी चाहिए थी मगर एचएसएससी और सरकार ने वेटिंग सूची कोटा नियम लागू कर दिया. सच्चाई तो यह है कि वेटिंग सूची का 10 फीसदी कोटा नियम उन पर लागू नहीं होता. उन्होंने कहा कि यदि हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग वैधता सीमा में चयन सूची जारी कर देता तो भी उनकी नियुक्ति हो जाती लेकिन वे तो सरकार और आयोग के बीच फंसकर पिस गए. अब उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर चुका है.
एडवोकेट जनरल की राय लेते रहे विभाग
दुखी उम्मीदवारों ने बताया कि उनका केस अयोग्य उम्मीदवारों के बाहर होने के बाद योग्य उम्मीदवारों का चयन होने का था लेकिन मुख्य सचिव कार्यालय उनके केस को वेटिंग सूची का केस बनाता रहा. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल के मुख्य प्रधान सचिव डीएस ढेसी ने यही बात लिखकर मुख्य सचिव को दी थी कि यह केस वेटिंग का नहीं है बल्कि मेरिट सूची संशोधित करने के लिए है. मुख्य सचिव कार्यालय ने इसे वेटिंग सूची का केस बनाकर पहले एलआर से राय ली कि क्या वेटिंग सूची से तय सीमा से ज्यादा उम्मीदवार लिए जा सकते हैं?
एलआर से नकारात्मक सलाह आई तो एडवोकेट जनरल से राय मांगी गई. एजी कार्यालय से भी नकारात्मक टिप्पणी मिली. इसके बाद, दो हफ्ते पूर्व यह केस बंद कर दिया गया. खिलाड़ियों ने कहा कि वे गरीब परिवारों से आते है. उनका ग्रुप डी ग्रेडेशन सर्टिफिकेट 25 मई, 2018 की नीति के तहत बना हुआ है. वे मेरिट सूची में स्थान पाने के योग्य हैं.
अगर एचएसएससी गलत चयन न करता या जो उम्मीदवार बाहर हुए हैं, उनके उसी समय ग्रेडेशन सर्टिफिकेट चेक कर लेता तो उनका चयन नहीं होता और उनकी सीटों पर योग्य उम्मीदवारों का नाम मेरिट में आता. उन्होंने कहा कि चार साल धक्के खाने के बाद अब वे फिर सड़क पर हैं. उनका कहना है कि अब वें हाईकोर्ट से ही न्याय की गुहार करेंगे.
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