चंडीगढ़ | हरियाणा की सीमा से सटे हिमाचल के सिरमौर जिले में 430 मीटर ऊंचे पहाड़ की गोद में तीन देवियों का निवास है. यहां बड़ी संख्या में लोग अन्य राज्यों से भी दर्शन के लिए आते हैं. कहा जाता है कि लगभग 450 वर्ष पुरानी देवी मां बालासुंदरी, ललिता, त्रि- भवानी के अस्तित्व के कारण प्रसिद्ध गांव त्रिलोकपुर में नवरात्रि पर चौदह दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है. हर बार नवरात्रि के दौरान उत्तर भारत से हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.
त्रिलोकपुर धाम से संबंधित गाथा
किंवदंती के अनुसार, 1573 के आसपास स्थानीय दुकानदार रामदास उत्तर प्रदेश के देवबंद से नमक का एक बैग लाया था. दुकानदार दिन भर थैले में नमक बेचता रहा, लेकिन फिर भी नमक कम नहीं हुआ. यह चमत्कार देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया. उसी रात रामदास को स्वप्न में माँ भगवती ने बालक के रूप में दर्शन देकर कहा कि मैं तुम्हारी नमक की बोरी में पिंडी के रूप में आई हूं.
आगे कहा कि अब मेरा निवास तुम्हारे आंगन में स्थित पीपल के वृक्ष की जड़ में है. आप लोक कल्याण के लिए यहां एक मंदिर का निर्माण करें. जब सुबह हुई तो व्यापारी ने देखा कि बिजली और गरज के कारण पीपल का पेड़ जड़ से टूट गया और देवी माँ प्रकट हुईं. तब रामदास ने अपने आसपास के लोगों को रात में देखे गए सपने के बारे में बताया और तभी से पिंडी को मां बाला सुंदरी के रूप में पूजा जाने लगा.
जयपुर- राजस्थान से कारीगरों ने बनाया मंदिर
उस समय सिरमौर राजधानी का शासन महाराज प्रदीप प्रकाश के अधीन था. उन्होंने जयपुर- राजस्थान से कारीगरों को आमंत्रित किया और तीन वर्षों में मंदिर का निर्माण पूरा किया, जो उत्तर- आधुनिक शिल्प कौशल और वास्तुकला की इंडो- फ़ारसी शैलियों के मिश्रण का एक अद्भुत उदाहरण है.
राजपरिवार में पूजा बनी परंपरा
यह उत्तर भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. इसका जीर्णोद्धार 1823 में महाराजा रघुवीर प्रकाश द्वारा और 1851 में महाराजा फतेह प्रकाश द्वारा किया गया था. मंदिर के निर्माण के बाद, देवी बालासुंदरी की पूजा शाही परिवार में एक परंपरा बन गई. मंदिर की स्थापना के बाद से ही लाला रामदास के वंशज वहां मुख्य पूजा करते आ रहे हैं.
त्रि- भवानी मंदिर
माता ललिता मंदिर माता बाला सुंदरी के भवन से ढाई किलोमीटर दूर पूर्व में तथा त्रि- भवानी मंदिर 10 किलोमीटर दूर उत्तर- पश्चिम में है. इन दोनों देवियों के बीच में माता का स्थान हुआ है. 3 देवियों के निवास के कारण ही इस गांव का नाम त्रिलोकपुर प्रसिद्ध है. 3 मार्च 1974 से हिमाचल प्रदेश सरकार ने मंदिर का रखरखाव अपने हाथ में ले लिया और माता बाला सुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर बोर्ड का गठन किया गया.
ऐसे पहुंचे मंदिर
त्रिलोकपुर पहुंचने के लिए कालाअंब से 8 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है, जबकि यमुनानगर से कालाअंब की दूरी 50, बराड़ा से 30, अंबाला से 53, चंडीगढ़ से 72 किलोमीटर है. श्रद्धालु कालाअंब से यमुनानगर के साढौरा और हिमाचल के नाहन से होते हुए त्रिलोकपुर पहुंचते हैं.
ऐसा माना जाता है कि माता बाला सुंदरी के दर्शन के साथ- साथ ध्यानु भगत के दर्शन करना भी जरूरी है, तभी भक्तों की यात्रा सफल मानी जाती है. त्रिलोकपुर में 3 देवियों के अलावा मां काली, मां संतोषी, मां दुर्गा, मनसा देवी, शेरावाली, गणेश, हनुमान, शिव परिवार, भैरवनाथ की अलौकिक मूर्तियां और प्रतिमाएं हैं.
हजारों श्रद्धालु आते हैं हर दिन
त्रिलोकपुर मेले में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं, जिनकी सुविधा के लिए हरियाणा रोडवेज की दर्जनों बसें लगाई गई हैं. वहीं, निजी बसों, मैक्सी कैब और टूर एंड ट्रैवल कंपनियों के वाहनों से भी हजारों श्रद्धालु त्रिलोकपुर आते हैं. बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए एम्बुलेंस सुविधा, विश्राम गृह, प्राथमिक चिकित्सा, औषधालय और सूचना केंद्र, पार्किंग जैसी सुविधाएं प्रदान की जाती हैं. इसके अलावा, यात्रियों के ठहरने के लिए यात्री निवास और धर्मशाला की भी व्यवस्था है.
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