करनाल | हरियाणा में इन दिनों बासमती धान में तेला कीट का प्रकोप देखने को मिल रहा है. बासमती धान में तेला कीट लगने से किसान काफी परेशान नजर आ रहे हैं. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो धन की फसल पर 25 से 40 फीसदी तक पैदावार घट सकती है. ऐसे में यहां आपको बताते है कि किसान साथी इन इस कीट की पहचान कैसे करें और इसकी रोकथाम के लिए कौन सा उपाय करें.
कीट की पहचान
इस समय बासमती धान में तेला कीट का प्रकोप देखने को मिल रहा है. तेला कीट हरे, काले और सफेद भुरभुरा तीन रंगों का होता हैं जो देखने में मच्छर या सरसों के दाने के आकार का होते हैं. तेला कीट पौधे के ताने या निचले भाग को अपना शिकार बनाता है. देखने में वहां पर चिपचिपा सा पदार्थ लगा होता है और इन तीनों रंग में से किसी भी रंग का तेला या चेपा कीट मच्छर के आकार का बैठा हुआ दिखाई देता है. ऐसे में किसान सुबह या शाम को खेत जाकर अपनी फसल का निरीक्षण करें.
नमी वाले खेत में ज्यादा प्रकोप
कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर कर्मचंद ने बताया कि तेला कीट का प्रभाव उस खेत में ज्यादा दिखाई दे रहा है जहां खेत में नमी ज्यादा होती है या फिर यूरिया खाद की मात्रा ज्यादा डाली हुई होती है. शुरुआती समय में यह खेत के एक- दो हिस्से में ही अपना प्रकोप दिखाता है. वहां से पौधा सूखने लग जाता है या फिर खेत के किसी भाग के पौधे काले- काले दिखाई देने लगते हैं.
उन्होंने बताया कि अगर समय रहते इसका प्रबंधन न किया जाए तो धीरे- धीरे पूरे खेत को अपने प्रकोप में ले लेता है, जिससे पैदावार काफी प्रभावित होती हैं क्योंकि जिस पौधे पर यह किट बैठता है, उस पौधे से यह उसका रस चूसने लगा जाता है और उसका रस चूसने से धीरे- धीरे पौधा सूख जाता है.
तेला या चेपा से इस तरह करें फसल का बचाव
डॉ कर्मचंद ने बताया कि इस पर रोकथाम करने के लिए किसान बासमती धान के खेत में हल्की- हल्की सिंचाई करें और फिर उसमें 250 ML ‘डीडीबीपी’ (नुवान) जिसको देसी भाषा में नुवान कहा जाता है, 20 किलोग्राम रेत में मिलाकर छीटा विधि से अपने खेत में छिड़काव करें.
वहीं, जो किसान ऐसा नहीं करना चाहते हैं वह 200 ML मोनोक्रोटोफॉस नामक दवाई का 200 से 250 लीटर पानी में घोल बनाकर अपने खेत में छिड़काव करें. उन्होंने बताया कि दो से तीन दिन में इसका असर साफ नजर आएगा और आपकी फसल रोगमुक्त हो जाएगी.
ब्लास्ट रोग से ऐसे पाएं छुटकारा
कृषि विशेषज्ञ डॉ कर्मचंद ने बताया कि बासमती धान में तेला कीट के साथ- साथ कई जगहों पर ब्लास्ट नामक बीमारी भी देखने को मिल रही है. यह पहले पौधे के तने को अपना शिकार बनाती है. बाद में पत्तों से होते हुए पौधे की बाली तक पहुंच जाती है. इसकी पहचान यह है कि इस बीमारी में पौधे के पत्तों पर सफेद रंग के डब्बे या दरिया बन जाती है, जो धीरे- धीरे पौधे को सुखा देती है.
उन्होंने बताया कि कई जगह पर इस बीमारी को गर्दन तोड़ बीमारी भी कहा जाता है. इस बीमारी के चलते पौधा सूखने लग जाता है और जो बाली पौधे से निकलती है वह ऊपर से टूट कर नीचे लटक जाती है, जिसके चलते पैदावार पर प्रभाव पड़ता है.
इसकी रोकथाम के लिए 200 ML ‘बाविस्टिन’ दवाई 200 से 250 लीटर पानी में गोल बनाकर अपने खेत में छिड़काव करें. इस दवाई का छिड़काव ब्लास्ट रोग में काफी कारगर साबित होगा और जल्द ही आपकी फसल रोगमुक्त हो जाएगी.
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