चंडीगढ़ | राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में करारी हार के बाद अब हरियाणा में भी कांग्रेस पार्टी के लिए खतरे की घंटी बज गई है. राजस्थान में सत्ता में होते हुए भी कांग्रेस पार्टी की हार हरियाणा के कांग्रेस नेताओं के लिए एक सबक है और इसकी सबसे बड़ी वजह आपसी गुटबाजी है. राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच गुटबाजी किसी से छिपी नहीं थी और नतीजतन कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा.
संगठन खड़ा करना सबसे पहला काम
ऐसे में अब हरियाणा में कांग्रेस पार्टी को दस साल बाद सत्ता में वापसी करनी है तो सबसे पहले आपसी गुटबाजी से ऊपर उठकर पार्टी की मजबूती के लिए खड़ा होना पड़ेगा. इसी गुटबाजी के चलते पार्टी पिछले 9 साल से हरियाणा में संगठन भी नहीं खड़ा कर पाई है. अभी भी संगठन सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर ही चल रहा है. कांग्रेस पार्टी को संगठन खड़ा करने पर सबसे ज्यादा फोकस करना होगा तभी पार्टी की नैया पार लगने की संभावना जीवित हो सकती है.
OPS से नैया पार लगना मुश्किल
इसके अलावा, पार्टी चुनाव को लेकर जिन मुद्दों जैसे OPS आदि को लेकर आगे बढ़ रही है उनमें भी बदलाव लाना होगा. केवल ओल्ड पेंशन स्कीम के जादू के सहारे पार्टी की नैया पार लगना मुश्किल नजर आ रहा है. संगठन खड़ा करने को लेकर कांग्रेस के हालात क्या है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि JJP, INLD, AAP जैसे क्षेत्रीय दल भी अपने संगठन का विस्तार कर चुके हैं. संगठन खड़ा नहीं कर पाना कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो सकता है.
अपने ही क्षेत्र में सक्रिय हैं नेता
गुटबाजी के चलते ही पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर हारी थी और फिर विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को इसका नुकसान झेलना पड़ा था. गुटबाजी के चलते प्रदेश में पहली पंक्ति के नेता केवल अपने क्षेत्र में ही सक्रिय होकर रह गए हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री भुपेंद्र हुड्डा जाट बेल्ट में सक्रिय हैं तो वहीं रणदीप सुरजेवाला, कुमारी शैलजा और किरण चौधरी अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं. इन नेताओं को अपने हितों को त्यागकर पार्टी के संगठन की मजबूती के लिए काम करना होगा. वरना राजस्थान जैसे चुनावी नतीजे हरियाणा में भी देखने को मिल सकते हैं.
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