गेहूं की खूब बिक्री लेकिन इस बार MSP का नाम तक नहीं ले रहे हैं किसान, जानिए हुआ क्या

नई दिल्ली ।हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत देश भर में गेहूं की सरकारी खरीद जारी है लेकिन किसान आंदोलन की धुरी रहें न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी (MSP) का जिक्र ज्यादा नहीं हो रहा है. एमएसपी पर गेहूं बेचने की किसान चर्चा तक नहीं कर रहे हैं. वैसे भी दो दशक के बाद किसानों के पास मौका आया है जब गेहूं एमएसपी से ज्यादा भाव पर बिक रही हैं.

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बता दें कि गेहूं के बाजार में इस साल बड़े उलटफेर हुए हैं. दुनिया के दो बड़े गेहूं निर्यातक देश रुस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़ी हुई है और इसके चलते इंटरनेशनल मार्केट में गेहूं के भाव में तेजी का दौर जारी है. इन हालातों से भले ही दुनिया के अन्य देशों को परेशानी झेलनी पड़ रही हों लेकिन भारत का किसान खुश हैं. तभी तो अधिकतर राज्यों में गेहूं की बिक्री एमएसपी से ज्यादा भाव पर हो रही है.

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क्या हैं MSP

केन्द्र सरकार ने गेहूं के इस सीजन के लिए एमएसपी 2015 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है लेकिन बात करें दिल्ली, हरियाणा या पंजाब की सभी जगहों पर गेहूं एमएसपी से ज्यादा भाव पर बिक रही हैं. हालांकि सरकार एमएसपी पर ही गेहूं खरीद रही है लेकिन व्यापारी उससे ज्यादा भाव देकर सीधे किसानों से गेहूं खरीद रहे हैं. दिल्ली की नरेला मंडी में कल गेहूं 2,200 रुपये क्विंटल बिका था. हरियाणा में भी 2,050 से 2,100 रुपये क्विंटल तक गेहूं बिक रहा है. मध्य प्रदेश में तो शरबती गेहूं का भाव 2,400 से 2,700 रुपये क्विंटल तक चल रहा है.

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सरकारी खरीद का लक्ष्य पूरा होना मुश्किल

एक अप्रैल से गेहूं की सरकारी खरीद देश के अधिकतर राज्यों में शुरू हो चुकी है और सरकार ने इस साल रिकार्ड 444 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य तय किया है लेकिन मंडियों से बाहर एमएसपी से ज्यादा भाव मिलने की वजह से यह लक्ष्य पूरा होना मुश्किल नजर आ रहा है.

क्या हैं एमएसपी व्यवस्था

किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू की गई है. अगर कभी फसलों की क़ीमत गिर भी जाती है, तब भी केंद्र सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल ख़रीदती है. ऐसा इसलिए ताकि किसानों को नुक़सान से बचाया जा सके. किसी फसल की एमएसपी पूरे देश में एक ही होती है.

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एक अनुमान के अनुसार देश में केवल 6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता हैं और इनमें सबसे ज्यादा किसान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं. यही सबसे बड़ी वजह थी कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि कानूनों का विरोध भी सबसे ज्यादा इन्हीं इलाकों में हुआ था.

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