देश के नाम संबोधन में बोलें पीएम मोदी, लॉकडाउन हैं अंतिम विकल्प, दिए चार खास सुझाव

नई दिल्ली । करीब 6 महीने बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को राष्ट्र को संबोधित किया. उनका भाषण वक्त के तकाजे के मुताबिक, संयमित और एक खास मकसद से था. यह उस आम आदमी के लिए था,जो कोरोना महामारी के चलते बेहाल है. उनको समझते हुए प्रधानमंत्री ने महामारी को एक तुफान की संज्ञा दी..

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प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में चार बातें खास थी, आईये इनके बारे में सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं:

पहली

प्रधानमंत्री के भाषण में मुख्य प्रयास लोगों की दिक्कतों के साथ खड़े रहने का था. प्रधानमंत्री ने एक सीधा संदेश देने की कोशिश की और वो ये कि” मैं हूं ना . मेरी सरकार मैडिकल संसाधन जुटाने में लगी है. आप बस कुछ धैर्य रखें”. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में रामनवमी और रमजान को भी याद किया. मोदी ने अपने संबोधन में कोई नया प्रोग्राम नहीं दिया. कोई नई घोषणा नहीं की गई. प्रधानमंत्री ने काफी कुछ राज्यों पर छोड़ दिया. इससे समझा जा सकता है कि हालात कितने गंभीर है.

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दूसरी

प्रधानमंत्री ने मध्यम, छोटे दुकानदारों और कारोबारियों की अपार तकलीफों को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्रियों को एक संदेश दिया कि “लॉकडाउन आखिरी उपाय है. उसे सख्ती से न लगाएं”.
केन्द्र सरकार का रुख इस बार बहुत स्पष्ट लग रहा है कि टोटल लॉकडाउन आर्थिक गतिविधियों को बंद कर देगा और अर्थतंत्र को बहुत तगड़ी मार पड़ेगी. ऐसा दिख रहा है कि केन्द्र सरकार अर्थतंत्र की चिंता में राज्य सरकारों को लॉकडाउन न करने की सलाह दे रही है.

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तीसरी

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में टीकाकरण मुफ्त में किया जाएगा. हालांकि फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि 18 से 45 वर्ष की आयु वाले नागरिकों को भी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त टीकाकरण सेवा केंद्र सरकार द्वारा मिलेगी या नहीं.

चौथीं

आक्सीजन, दवाईयां और अस्पतालों में बैड की सुविधा, इस सभी को प्राप्त करने में जो कठिनाइयां है,उनको नजर में रखते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कैसे उनकी सरकार इन सभी मुसीबतों को दूर करने के लिए काम कर रही है. भाषण के माध्यम से प्रधानमंत्री द्वारा लोगों में जोश बढ़ाने का काफी प्रयत्न किया गया है, लेकिन जमीनी हकीकत इतनी पीड़ादायक है कि प्रधानमंत्री काफी संयमित लगें. संबोधन के वक्त वर्तमान समय का बोझ प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर साफ झलक रहा था.

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