हिसार के युवक ने कंप्यूटर इंजीनियर की नौकरी छोड़ गांव में शुरू की खेती, किसानों के लिए ऐसे बना रोल मॉडल

हिसार | युवा पीढ़ी अब कृषि में भी नए प्रयोग करने लगी है. इसके सकारात्मक परिणाम भी मिलने शुरू हो गए हैं. हरियाणा के हिसार जिले के प्रभुवाला गांव के रहने वाले मनीष (29) ने पुणे में कंप्यूटर इंजीनियर की नौकरी छोड़ गांव में खेती का काम शुरू कर दिया. महज दो साल में अपने नए प्रयोग से उन्हें न सिर्फ नौकरी से ज्यादा आमदनी हुई. बुवाई से लेकर पराली प्रबंधन तक किसानों के लिए रोल मॉडल बन गए. इस युवा किसान ने न केवल डीएसआर (चावल की सीधी सीडिंग) विधि से धान की बुवाई करके खर्च कम किया है बल्कि पराली बनाकर प्रदूषण नियंत्रण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

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पुणे शहर में बड़े पैकेज पर मिली नौकरी

उकलाना क्षेत्र के प्रभुवाला गांव के रहने वाले मनीष को दिल्ली से कंप्यूटर इंजीनियर की पढ़ाई पूरी करने के बाद महाराष्ट्र के पुणे शहर में एक बड़े पैकेज पर नौकरी मिल गई. कुछ वर्षों तक काम करने के बाद यह महसूस किया कि कृषि में नई तकनीकों का उपयोग करके अच्छे परिणाम लाए जा सकते हैं, जिसके बाद मनीष नौकरी छोड़कर गांव आ गया और कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेकर खेती में लग गया.

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मनीष का कहना है कि हरियाणा और पंजाब के सफल किसानों के अलावा उन्हें धान की बुवाई के नए तरीके डीएसआर के बारे में विशेषज्ञों से बातचीत के दौरान पता चला. पुराने अनुभवी किसानों के साथ चर्चा करने के बाद इसे अपने खेत में इस्तेमाल करने का फैसला किया. गेहूं की कटाई के बाद धान की सीधी बुवाई सीड ड्रिल मशीन से की गई.

लागत घटेगी तो बढ़ेगा मुनाफा

रोपाई के बजाय सीधी बुवाई से पानी बचाने के अलावा श्रम भी कम होता है. एक सप्ताह में 35 एकड़ भूमि में धान की बुवाई का कार्य आसानी से हो जाता था. समय-समय पर खरपतवार प्रबंधन और सिंचाई की जाए तो औसतन 30 क्विंटल धान प्रति एकड़ पैदा होता है. इस विधि से बुवाई करने से लागत एक चौथाई कम हो जाती है. अब हम गेहूं के अलावा खरबूजे और तरबूज की खेती करेंगे.

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500 रुपये प्रति एकड़ किया गया खर्च

कटर मशीन से पराली को कटाने पर करीब 500 रुपये प्रति एकड़ खर्च किया गया. इसके बाद बेलर मशीन ने पुआल की एक गांठ बनाकर निकाल ली. इस कार्य के लिए कृषि विभाग से एक हजार रुपये प्रति एकड़ की राशि भी प्राप्त हुई थी. इस पर पराली हटाने का खर्च सरकारी विभाग से ही वहन किया गया. बिना कोई अतिरिक्त पैसा खर्च किए खेत भी खाली हो गया और प्रदूषण भी नहीं हुआ. गांव के अन्य किसानों ने भी यह तरीका अपनाया है.

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अधिकारी भी कर रहे सराहना

किसानों के लिए रोल मॉडल बन रहे इंजीनियर मनीष सच्चर की भी अधिकारी सराहना कर रहे हैं. कृषि विभाग के सहायक अभियंता गोपीराम सिहाग ने कहा कि हमारी युवा पीढ़ी भी खेती में रुचि ले रही है और इसे लाभदायक बना रही है, यह भविष्य के लिए एक अच्छा संकेत है. मनीष जैसे युवा अन्य युवाओं के लिए भी प्रेरणा हैं. फील्ड ऑफिसर योगेश ने बताया कि क्षेत्र के लोग भी मनीष के प्रयासों की सराहना कर रहे हैं. इस युवक ने पराली के उचित निपटान के लिए दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया है. इसके चलते पराली जलाने की घटनाएं कम हो रही हैं.

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