हिसार | आदमपुर में कुलदीप बिश्नोई के विधायक पद से इस्तीफा देने और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन (BJP) करने के साथ ही आदमपुर में उपचुनाव की जमीन तैयार हो गई थी. चुनाव आयोग द्वारा आदमपुर उपचुनाव के लिए 3 नवंबर को वोटिंग का दिन तय कर दिया गया है और 6 नवंबर को वोटों की गिनती होगी. आदमपुर में इससे पहले तीन बार 1998, 2008 और 2011 में उपचुनाव का बिगुल बज चुका है और तीनों में ही भजनलाल फैमिली का वर्चस्व कायम रहा. इस बार के उपचुनाव की खास बात यह रहेगी कि भजनलाल फैमिली पहली बार भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर चुनावी मैदान में होगी.
ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि आदमपुर उपचुनाव में कुलदीप बिश्नोई खुद या फिर अपने बेटे को चुनावी रण में उतार सकतें हैं. वहीं, कांग्रेस पार्टी कलायत से पिछली बार विधायक रहे जयप्रकाश उर्फ जेपी या पूर्व सांसद पंडित रामजीलाल के भतीजे चन्द्र प्रकाश पर दांव खेल सकती है. इसके अलावा पूर्व विधायक कुलवीर बेनिवाल का नाम भी चर्चाओं में बना हुआ है. आम आदमी पार्टी की ओर से बीजेपी छोड़कर आप पार्टी में शामिल हुए सतेन्द्र सिंह को टिकट दी जा सकती है बाकी भविष्य के गर्भ में है कि कौन-सी पार्टी किस प्रत्याशी को आदमपुर उपचुनाव के चुनावी रण में मौका देती है.
यहां आपको बता दें कि भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार में शामिल जननायक जनता पार्टी के साथ मिलकर आदमपुर का उपचुनाव लड़ेंगी. गठबंधन सरकार इससे पहले बड़ोदा और ऐलनाबाद का उपचुनाव हार चुकी है. ऐसे में 3 नवंबर को आदमपुर में होने वाले उपचुनाव के लिए भजनलाल परिवार के साथ-साथ बीजेपी की प्रतिष्ठा भी दांव पर रहेगी. ऐसे में भजनलाल परिवार के गढ़ में सेंध लगाना दूसरे राजनीतिक दलों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा.
भजनलाल परिवार का वर्चस्व
1968 से आज तक राजनीति में PHD की उपाधि प्राप्त करने वाले चौधरी भजनलाल के किले को ढहाने में किसी पार्टी को सफलता हासिल नहीं हुई है. साल 1977 व 1987 में कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद भजनलाल परिवार अपने गढ़ आदमपुर को बचाने में कामयाब रहा था. इतना जरूर है कि समय बीतने के साथ भजनलाल परिवार के सदस्यों का हार-जीत का अंतर काफी कम हो गया है.
साल 2009 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की टिकट पर आदमपुर के चुनावी रण में उतरे जयप्रकाश ने कुलदीप बिश्नोई को हार का अहसास करवा ही दिया था. उस समय खुद की पार्टी हजकां से आदमपुर का चुनाव लड़ने वाले कुलदीप बिश्नोई को मात्र 6 हजार वोटों से जीत हासिल हुई थी.
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