हिसार । हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में बड़े स्तर पर सरसों फसल की खेती की जाती है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से मौसम में प्रभाव के चलते सरसों की फसल को बीमारियां अपने लपेटे में ले रही है. सरसों की फसल में गत कई वर्षों से इस समय मुख्य तौर पर दो बीमारियां फैलती है, जिनमें पहली गला तलन व दूसरी सफेद रतुआ है. हालांकि हर साल सरसों की फसल में इन बीमारियो का प्रकोप रहता है लेकिन इस समय में मौसम इन बीमारियो के अनुकूल होने के चलते फैलाव ज्यादा हों रहा है. ऐसे में किसान साथियों को इस समय बहुत ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है.
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के तिलहन विभाग में वैज्ञानिक व सरसों की फसल के विशेषज्ञ डॉ राकेश पूनिया ने बताया कि इस समय मौसम सरसों की फसल में बीमारियों के लिए अनुकूल बना हुआ है. इसलिए किसान साथी अपनी फसल में निम्न लक्षणों की पहचान करें और उपचार के माध्यम से अपनी फसल में नुकसान होने से बचाव कर सकते हैं.
तना गलन
सरसों की फसल के लिए यह बीमारी बहुत ख़तरनाक है. यह जमीन व बीज से उगने वाली बीमारी है. इस बीमारी में सबसे पहले पत्तों पर गोलाकार सफेद धब्बे नजर आते हैं और फिर जैसे ही यह बीमारी बढ़ती है तो यह पत्तियों से तने पर फैल जाती है. तने पर सफेद रंग की फफूंद दिखाई देती है और जब यह तने को पूरी तरह से कवर कर लेती है तो तना टूट जाता है और पौधा मुरझा कर सूखने लग जाता है. जिससे फसल पर बहुत ज्यादा हानिकारक प्रभाव देखने को मिलता है.
तना गलन से बचाव के उपाय
डॉ रमेश पूनिया ने बताया कि बिजाई के 45-50 दिन के बाद कार्बेन्डाजिम (बविस्टीन) 200 ml, 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. पहले छिड़काव के 15 दिन बाद फिर यह छिड़काव करें. वहीं ऐतिहात के तौर पर किसानों को बिजाई से पहले इसी दवाई के साथ 1 किलोग्राम बीज में 2 ग्राम के हिसाब से बीज उपचार भी करना चाहिए.
व्हाइट रस्ट
इस बीमारी को हिंदी में सफेद रतुआ भी कहते हैं. यह फंगस के कारण होने वाली बीमारी है. इस बीमारी में पत्तों के निचले भाग में सफेद धब्बे से बन जाते हैं. बीमारी ज्यादा फैलने पर यह पत्तों के बाद तनों से होती हुई फलियों तक पहुंच जाती है. यह अंतिम स्टेज होती है जो फसल के लिए बहुत हानिकारक होती है.
फलियों में पहुंचने के बाद यह टहनी की बढ़वार को रोक देती है तथा टहनी मोर पंजे का आकार ले लेती है. इससे फलियां बननी बंद हो जाती हैं. वहीं पत्तों व तने पर कमजोरी की वजह से पौधे की खुराक कम होती जाती है. इससे फसल की पैदावार पर बहुत ज्यादा असर होता है.
सफेद रतुआ से बचाव के उपाय
इस बीमारी के लक्षण नजर आने पर 600 से 800 ग्राम मैनकोजेब (डाईथेन-M45) को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. 15 दिन बाद फिर से इसी मात्रा में फसल के अंदर छिड़काव करें. ऐसा दो से तीन बार करना बेहद जरूरी है.
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