हिसार । कहते हैं उम्मीदें हैं तो सब-कुछ है. इसकी ताजा बानगी हमें हिसार जिले के गांव नियाणा में देखने को मिली. यहां अपने स्वर्गीय पिता का कर्ज उतारने 30 साल बाद उनके बेटे गांव लौटें. उनके इस कदम की हर ग्रामवासी सराहना करते नहीं थक रहे थे.
दरअसल पूरा मामला आज से तकरीबन 30 वर्ष पहले का है. गांव के ही निवासी जगन व नरसी सेठ गांव में किसानों की फसल खरीद का कार्य करते थे. एक सीजन व्यापार में घाटा होने की वजह से वो किसानों की रकम दिए बगैर ही बिना बताएं गांव छोड़कर चले गए. ग्रामीणों ने अपनी फसल की रकम हासिल करने के लिए बहुत दौड़-धूप की लेकिन उनका कोई अता-पता नहीं चला.
अब 30 साल जब उनके बेटों ने गांवों में खबर दी कि वो अपने पिता के कर्ज को उतारने गांव आ रहे हैं तो हर किसी के चेहरे पर खुशी साफ देखी जा रही थी. बेटे गांव आए और उस समय का जिसका भी जितना पैसा था,वो हंसी-खुशी लौटा दिया. सभी ग्रामीणों ने उनके इस कदम की सराहना की. हालांकि कुछ किसानों ने अपनी रकम को ब्याज के साथ लौटाने की बात कही लेकिन वहां बैठे बुजुर्गों ने समझाया कि भाई ब्याज से तो मूल भी प्यारा.
बेटों ने कहीं ये बात
इस मामले को लेकर जब बेटे सतीश, मोहन से बात की गई तो उन्होंने बताया कि पिताजी ने मरते समय कहा था कि मैं व्यापार में घाटे की वजह से गांव वालों के पैसे चुकाए बिना ही गांव छोड़ गया था. अब भगवान की कृपा से हमारा जुगाड़ बहुत बढ़िया है. तुम्हें गांव वालों के पैसे चुकाने है ताकि मेरे उपर लगा यें कलंक उतर जाएं. बस पिताजी की यही बात हमारे दिल में बैठ गई और हम सभी भाईयों ने मिलकर निर्णय लिया कि चाहे कैसे भी हों, हमें पिताजी की कहीं बात को पूरा करना है. उन्होंने बताया कि तीन गांवों नियाणा, मिर्जापुर व खोखा में करीब 15 लाख की देनदारी थी जो हमने चुकता कर दी है.
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