राकेश टिकैत ने खुद को बताया हरियाणवी, कही हरियाणा की राजनीति में एंट्री की तों नहीं तैयारी

झज्जर | भाकियू नेता राकेश टिकैत के एक बयान ने एक नया शिगूफा छेड़ दिया है. दरअसल किसान नेता राकेश टिकैत ने झज्जर में यह दावा किया कि वह हरियाणा के हैं और जो लोग उन्हें बाहरी समझने की भुल कर रहे हैं वो ये जान ले कि मैं सोनीपत जिले के मल्हाना गांव का हूं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मल्हाना गांव में जाट समुदाय के बालियान गोत्र के लोग रहते हैं. राकेश टिकैत भी बालियान गोत्र के हैं तो इस बात में कोई संदेह नहीं कि राकेश टिकैत इस गांव की बात कर रहे हों. लेकिन यह बात तो तय है कि वह इस गांव के निवासी नहीं है.

RAKESH TIKET

इस बात की भी प्रबल संभावना है कि यहां से कभी उनके पूर्वज मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव गए हों. लेकिन अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं है कि वर्षों पहले सोनीपत के मल्हाना गांव से सिसौली गए थे. बात यह भी हो सकती हैं कि अगर गए भी होंगे तो कई पीढ़ियों पहले. बता दें कि राकेश टिकैत के प्रपितामह बालियान खाप के चौधरी थे. चौधरी का टैग होता था तो टिकैत की उपाधि मिलती थी. उनके निधन के पश्चात बालियान खाप के सर्वमान्य लोगों ने उनके बेटे महेंद्र सिंह को चौधरी घोषित कर दिया. चौधर मिलने के बाद महेंद्र सिंह टिकैत एक बड़े किसान नेता के रूप में उभरे जिनके एक इशारे पर दिल्ली के वोट क्लब मैदान में लाखों किसानों की भीड़ इकट्ठा हो जाया करती थी.

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स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के बाद चौधर उनके बड़े बेटे नरेश टिकैत को मिलीं. आठ महीने पहले जब कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन शुरू हुआ तो टिकैत बंधु इसमें शामिल तों हुए लेकिन आंदोलन का शीर्ष नेतृत्व में उनकी कोई विशेष भूमिका नहीं थी. आंदोलन में शामिल किसान संगठनों ने मिलकर जब संयुक्त किसान मोर्चा की कमेटी का गठन किया तो दोनों टिकैत बंधुओं में से किसी को इस कमेटी में शामिल नहीं किया गया. आज भी संयुक्त किसान मोर्चा कोई प्रेस नोट रिलीज करता है तो उसमें भी दोनों टिकैत बंधुओं का कही कोई नाम नहीं होता है.

गिरफ्तारी प्रकरण के बाद बदलीं हवा

लेकिन मौजूदा स्थिति को भांपा जाएं तो आज हरियाणा में किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा राकेश टिकैत बन चुके हैं. दिल्ली में 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के दो दिन बाद जब पुलिस राकेश टिकैत को गिरफ्तार करने पहुंची तो राकेश टिकैत की आंखों से निकलें आंसुओं ने उन्हें रातों-रात हीरों बना दिया. मीडिया में टिकैत को रोता देख हरियाणा में उनके स्वजातीय समुदाय के लोग भड़क उठे और हजारों की संख्या में किसान रातों-रात टिकैत के साथ खड़े होने के लिए गाजीपुर बार्डर पहुंच गए थे.

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गुरनाम सिंह चढूनी जो हरियाणा में किसान आंदोलन को धार देने में अहम भूमिका निभा रहे थे. लेकिन जब उन्होंने राकेश टिकैत पर आक्षेप लगाएं तो उनके बयानों का जोरदार विरोध हुआ. इसका नतीजा यह हुआ कि वे बैकफुट पर चलें गए और राकेश टिकैत हरियाणा में किसान आंदोलन का खासमखास चेहरा बन गए. हरियाणा में जब भी वो किसानों की महापंचायत को संबोधित करने आते हैं तो जबरदस्त भीड़ उमड़ पड़ती है. हालांकि ये बात अलग है कि भीड़ में शामिल लोग उनके स्वजातीय ही होते हैं. लेकिन भीड़ तो भीड़ होती है और इससे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भी बल तो मिलता ही है.

कहीं सियासी पारी खेलने के मूड में तो नहीं

इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उतर प्रदेश में लड़े चुनावों में अपनी जमानत जब्त करवा चुके राकेश टिकैत हरियाणा से विधानसभा या लोकसभा का चुनाव लड़ने की सोच रहे हों. अब राकेश टिकैत के हरियाणा के सोनीपत का होने के दावे को इस बात से भी जोड़कर देखा जा रहा है क्योंकि सोनीपत से बेहतर जगह राकेश टिकैत के लिए हों ही नहीं सकती. सोनीपत जाट बहुल मतदाता क्षेत्र है और उनके गोत्र बाल्यान खाप के लोगों की संख्या भी बहुत है. लेकिन एक सवाल सभी के जेहन में यह भी है कि अगर राकेश टिकैत का मन चुनाव लड़ने का है तो वह किस राजनीतिक दल का सहारा लेंगे.

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प्रदेश में मौजूदा बीजेपी- जेजेपी गठबंधन सरकार का तो वो पहले से ही विरोध कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल में से वो इंडियन नेशनल लोकदल को ही चुनेंगे क्योंकि उनके पिता स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत और इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के बीच आत्मीय रिश्ता रहा है और कुछ दिन पहले राकेश टिकैत ने भी सिरसा पहुंचकर चौधरी ओमप्रकाश चौटाला से आशीर्वाद लिया था.

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