झज्जर | हिंदू धर्म में मंदिरों और देवी- देवताओं का विशेष महत्व है. इसी कड़ी में हरियाणा के झज्जर जिले के बेरी कस्बे में विश्व प्रसिद्ध मां भीमेश्वरी देवी मंदिर स्थित है, जहां आज अश्विन नवरात्रि पर्व की शुरुआत हो चुकी है. इस मौके पर महाभारत कालीन इस मंदिर में विशाल मेला आयोजित होता है जहां माता के मंदिर में शीश नवाने देशभर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं.
नवरात्रि के पहले ही दिन माता शैलपुत्री की पूजा- अर्चना भी यहां की गई. माता भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को खास तरह के लाल रंग की रत्न जड़ित पोशाक और स्वर्ण आभूषणों से सजाया गया था. नवरात्र की शुरुआत से ही यहां रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने पहुंचते हैं.
महाभारत कालीन इतिहास
झज्जर जिले के बेरी कस्बे में स्थित माता भीमेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुडा हुआ है. कुरूक्षेत्र की धरती पर हुएं महाभारत युद्ध से पहले भगवान कृष्ण ने पाण्डु पुत्र भीम को कुलदेवी मां से विजय श्री का आशीर्वाद लेने के लिए भेजा था. मां भीम के साथ चलने को तो तैयार हो गईं, लेकिन शर्त रखी कि रास्ते में कहीं उतारना नहीं होगा.
जब भीम बेरी पहुंचे तो उन्हें लघुशंका जाने के लिए कुलदेवी की प्रतिमा को नीचे रख दिया. तभी से माँ भीमेश्वरी देवी यहां विराजमान हैं. मां की पूजा अर्चना का सिलसिला महाभारत काल से ही चला आ रहा है. यहाँ के मंदिर को महाभारत काल में स्थापित किया गया था.
प्रतिमा एक, मंदिर दो
मां भीमेश्वरी देवी मंदिर की एक खास बात, इसे औरों से अलग बनाती है. यहाँ माँ की प्रतिमा तो एक है, लेकिन मंदिर दो है. जी हां, मां भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को रोजाना सुबह 5 बजे बेरी कस्बे से बाहर स्थित मंदिर में लाया जाता है, जहां श्रद्धालु माता के दर्शन कर पूजा- अर्चना करते हैं. दोपहर 12 बजे प्रतिमा को पुजारी अंदर वाले मंदिर में लेकर जाते हैं, जिसके बाद अंदर वाले मंदिर में मां आराम करती हैं. इस बार माता भीमेश्वरी देवी की पोशाक कोलकाता से बनकर आई है. चांदी के सिंहासन पर विराजमान मां के भव्य रूप का दर्शन करने के लिये देशभर से श्रद्धालु बेरी पहुंचने लगे हैं.
अश्विन नवरात्र में माँ की पूजा से मिलता है विशेष फल
पुजारी कुलदीप ने बताया कि नवविवाहित जोड़े माता भीमेश्वरी देवी के दर्शन कर बेहतर भविष्य की कामना करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ श्रद्धालु अपने नवजात शिशुओं के सिर का मुंडन करा कर बाल माता पर चढ़ाते हैं, ताकि उनके बच्चों के सिर पर माँ की कृपा बनी रहे.
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