जींद | हरियाणा के जींद जिला के बीबीपुर गांव के सुनील जागलान के गांव में एक समय पर्दा प्रथा का पूरा प्रभाव था. उन्हें अपने घर और गांव की हर महिला घूंघट में नजर आ रही थी. उन्होंने इस प्रथा को खत्म करने और महिलाओं को घूंघट से मुक्ति दिलाने की ठानी. वह वर्ष 2013 में गांव के सरपंच बने. उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ कार्रवाई कहीं और के बजाय अपने घर से शुरू करने के बारे में सोचा. उन्होंने अपनी जीवनसंगिनी को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार किया. समाज के ताने- बाने को बनाए रखने और महिलाओं को जागरूक करने के लिए उन्होंने एक आइडिया निकाला.
गांव की 70 महिलाओं ने घूंघट करना किया बंद
पत्नी दीपा ने घूंघट उठाया तो सुनील ने उसे अपनी कार की अगली सीट पर बैठाकर गांव की गलियों में घुमाया. इसका नतीजा ये हुआ कि उसी दिन से गांव की 70 महिलाओं ने घूंघट करना बंद कर दिया. इसके बाद, उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया और 100 से ज्यादा गांवों को अलख जगाया. बता दें कि सुनील जागलान सेल्फी विद डॉटर्स कैंपेन से देशभर में मशहूर हुए थे.
सुनील ने महिलाओं को किया जागरूक
जब वह सरपंच बने तो उन्होंने महिला सशक्तिकरण की दिशा में पहला कदम उठाया. उन्होंने पहली बार गांव में महिला ग्राम सभा का आयोजन शुरू किया और ऐसी महिलाओं को प्राथमिकता दी जो पर्दा प्रथा छोड़ना चाहती थीं या छोड़ चुकी थीं. उनके द्वारा बताए गए गांव के कार्यों को प्राथमिकता दी गई. गांव की कई महिलाओं ने पत्नी दीपा के घूंघट छोड़ने पर आपत्ति भी जताई थी लेकिन, जगलान ने उन्हें समझाया. अन्य महिलाओं ने भी मां अनीता रेढू से शिकायत की लेकिन, मां ने उन्हें बताया कि बहू दीपा ने खुद ही पर्दा करना बंद कर दिया है.
पत्नी दीपा ढुल ने बताया कि घूंघट में व्यक्तित्व की पहचान नहीं होती. जब कोई इंसान अपनी बात रखता है तो उसके चेहरे का मकसद पता चल जाता है. ऐसे में महिलाओं का व्यक्तित्व पर्दे के पीछे छिपा रहता है. आज की लड़कियां जिस ग्रामीण परिवेश से आती हैं, वहां वे पर्दा प्रथा के खिलाफ मानसिक रूप से तैयार होती हैं.
पर्दों के बिना जिंदगी आसान
सुनील ने बताया कि उन्होंने पितृसत्तात्मक सोच को बदलने के लिए भी अभियान चलाया है. उनके घर में सभी लोग अपना गोत्र का नाम लगाते हैं. उनकी मां रेढू गोत्र से हैं और अपना नाम अनिता रेढू लिखती हैं. यदि उसकी पत्नी धूल गोत्र से है तो वह दीप धूल लिखती है. उनकी बेटियां अपने गोत्र जागलान को ही रोपती हैं.
50 से ज्यादा महिलाओं ने मंच पर ही छोड़ा घूंघट
सुनील जागलान ने पर्दा प्रथा के खिलाफ भी सामूहिक प्रयास किये. वर्ष 2017 में तलौड़ा गांव में भी एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम में 50 से ज्यादा महिलाओं ने मंच पर ही घूंघट छोड़ दिया. तलौड़ा गांव के पूर्व सरपंच मदन लाल ने बताया कि आज गांव की अधिकतर महिलाओं को घूंघट से आजादी मिल गई है. सुनील जागलान ने बताया कि अब 42 पंचायत प्रतिनिधि महिलाओं ने पर्दा करना और चार महिलाओं ने बुर्का पहनना बंद कर दिया है.
कुछ दिन पहले ही गुरुग्राम जिले के सुल्तानपुर और कालियावाला गांव में महिलाओं ने घूंघट छोड़ दिया है. इसी प्रकार हिसार जिले के सरसोद गांव को भी गोद लिया गया है। वहां की महिला सरपंच ने भी घूंघट का त्याग कर दिया है. दीपा ढुल 2013 में घूंघट छोड़कर पहली बार गांव में निकली. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सामाजिक संस्था प्रणब फाउंडेशन ने भी अपनाया है. उनकी संस्था के साथ मिलकर यह अभियान प्रदेश के 100 गांवों में चलाया जा रहा है.
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