कुरुक्षेत्र । प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में करवा चौथ के चार दिन बाद यानि अष्टमी को अहोई माता का व्रत रखा जाता है जो सभी माताएं अपनी संतान की लंबी आयु ,अच्छे स्वास्थ्य एवं उनकी सुख समृद्धि के लिए रखती हैं. इस व्रत को तारों की छांव देखकर खोला जाता है . पूरे दिन निर्जला रहकर अहोई माता की कथा एवं पूजा पाठ किया जाता है .
पूजा के वक्त महिलाओं द्वारा गोबर से या कपड़े पर आठ कोठों की एक पुतली बनाई जाती है जिसमे अपने बच्चों की आकृतियां बनाई जाती हैं. व्रत खोलने के बाद शाम को प्रदोष काल में इसकी पूजा करने का विधान है .
अहोई माता की पूजा के लिए कहीं कहीं चांदी के दानें को अत्यंत शुभ माना जाता है इसलिए सभी माताएं हर अहोई अष्टमी पर दो चांदी के दानें एक माला में पिरोती हैं व इसी तरह हर साल माला में दो नए चांदी के दाने पिरोती जाती हैं जिसे पूजा के बाद धारण करती हैं.
बाद में किसी भी शुभ दिन के अवसर पर इस माला की पूजा करके इसको उतारकर अगले अहोईअष्टमी के व्रत पर उसमें 2 अन्य चांदी के मनके पिरोए जाते हैं, अतः इस प्रकार इस बढ़ी हुई माला को ही फिर इस पूजा में पहना जाता है.
यह है पूजा का शुभ मुहूर्त एवं व्रत की समाप्ति
इस बार व्रत का प्रारंभ 8 नवंबर को सुबह साढ़े सात बजे होगा जिसकी समाप्ति 9 नवंबर को सुबह 6 बजकर 50 मिनट पर होगी. व्रत रखने वाली महिलाओं हेतु पूजा का शुभ मुहूर्त: 5 बजकर 37 मिनट से शाम 06 बजकर 56 मिनट के बीच है.