30 मई को 30 साल बाद सोमवती अमावस्या पर अद्भुत संयोग, जानें महत्व और पूजा की विधि

ज्योतिष | सोमवती अमावस्या 30 मई को सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाई जाएगी. 30 सालों के बाद 30 मई को सोमवती अमावस्या पर अद्भुत संयोग बन रहा है. 29 मई यानि रविवार को वट सावित्री व्रत है. ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस वर्ष वट सावित्री व्रत चतुदर्शी विद्धा अमावस्या वाले दिन 29 मई को होगा. अमावस इस दिन सूर्यास्त से पहले त्रिमुर्हत व्यापिनी है.

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ज्योतिष शास्त्रों में बताया गया है कि वट देव वृक्ष है. वट वृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन विष्णु तथा अग्रभाग में देवाधिदेव शिव स्थित रहते हैं. देवी सावित्री भी वट वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती है. इसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति व्रत से मौत की नींद सो चुके पति को दोबारा जिंदा कर दिया था, तब से यह व्रत वट सावित्री के नाम से किया जाता है. ज्येष्ठ माह के व्रतों में वट सावित्री व्रत एक प्रभाव व्रत है. इसमें वट वृक्ष की पूजा की जाती है.

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सोमवती अमावस्या का महत्व

स्वाति ज्योतिष केंद्र के संचालक पंडित बलराज कौशिक के अनुसार सोमवती अमावस्या के दिन स्नान-दान पितरों का तर्पण करना चाहिए. महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि पुरुषों के लिए भी सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व है. व्रत में पूजा- पाठ, स्नान व दान आदि का अक्षय फल मिलता है.

पूजा विधि

अमावस्या को एक बांस की टोकरी में सप्त धान्य के ऊपर ब्रह्मा और ब्रह्म सावित्री तथा दूसरी टोकरी में सत्यवान एवं सावित्री की प्रतिमा स्थापित कर वट के समीप यथाविधि पूजन करना चाहिए. पूजन के समय स्त्रियां वट की पूजा करती हैं तथा उसकी जड़ों को पानी से सींचती है. वट की परिक्रमा करते समय 108 बार यथाशक्ति सूत लपेटा जाता है.

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अमावस्या का समय

अमावस्या तिथि आरंभ : 29 मई दोपहर 2 बजकर 54 मिनट से सोमवार 30 मई शाम 4 बज कर 59 मिनट तक रहेगी.

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