ज्योतिष | होली के त्योहार के रंग फुलेरा दूज के साथ ही शुरू हो जाते हैं क्योंकि इस दिन राधा कृष्ण के सभी मंदिरों में फूलों की होली खेली जाती है. बता दें कि ब्रज मंडल में फुलेरा दूज के साथ होली का पर्व पूरे धूमधाम से मनाया जाता है. इसके बाद होलाष्टक, लड्डू की होली, लट्ठमार होली से लेकर रंग पंचमी का पर्व भी मनाया जाता है. आप सभी लोगों ने भी इस प्रकार की होलियों के बारे में सुना है. यदि नहीं सुना है तो आज की यह खबर आपके लिए काफी अहम होने वाली है.
होलिका दहन से पहले अलग- अलग प्रकार की होली
हिंदू पंचांग के अनुसार, 27 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो जाएगा जो 7 मार्च को होलिका दहन के साथ ही समाप्त होगा. अबकी बार 8 नहीं बल्कि पूरे 9 दिनों तक होलाष्टक पड़ रही है. बता दें कि होलाष्टक के दौरान किसी प्रकार के मांगलिक और शुभ काम करने की मनाही होती है. इन दिनों में भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा करने से आपको विशेष फल प्राप्त होते हैं.
आमतौर पर लड्डू को खुशी के रूप में बांटे जाने की परंपरा है परंतु बरसाना में लठमार होली से ठीक 8 दिन पहले लोगों पर अबीर- गुलाल की तरह ही लड्डू फेंके जाते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से लोगों के बीच मिठास बनी रहती है. नंदगांव से होली खेलने के लिए बरसाना आने का आमंत्रण स्वीकारने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को बरसाना में लठमार होली खेली जाती है. इस दिन मथुरा ब्रज में महिलाएं पुरुषों के ऊपर प्यार से लाठी बरसाती है और पुरुष ढाल से खुद की रक्षा करते हैं. इस होली को राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना जाता है.
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है, इसे आमलकी या आंवला एकादशी भी कहते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती पहली बार काशी गए थे, इसी वजह से इस दिन यहां पर धूमधाम से रंग खेला जाता है.
ब्रज में होलिका दहन 1 दिन पहले किया जाता है, इसी वजह से 7 मार्च को होलिका दहन है और ब्रज में 6 मार्च को होलिका दहन किया जाता है. फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन पूरे देश में होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है. देशभर में 8 मार्च को होली खेली जाएगी.
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