ज्योतिष, Pitru Paksha 2023 | कल से पितृपक्ष शुरू होने जा रहे है. पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृपक्ष को काफी खास माना जाता है. हर बार पितृ पक्ष का आरंभ भाद्रपद महीने की पूर्णिमा तिथि से हो जाता है. अबकी बार पितृपक्ष 29 सितंबर से शुरू हो रहे हैं जोकि 14 अक्टूबर तक जारी रहेंगे. पूर्णिमा के दिन उनका श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु किसी भी वर्ष की पूर्णिमा के दिन हुई थी. पितृपक्ष के दौरान जल और तिल से तर्पण करने का विशेष महत्व बताया गया है.
क्यों जल और तिल से ही किया जाता है तर्पण
जन्म से लेकर मोक्ष तक जो साथ दे वह केवल जल ही है. तिलों को देवान्न कहा गया है, इसी से पितरों को तृप्ति मिलती है. हम आपको बताना चाहते हैं कि श्राद्ध केवल तीन पीढियां तक का ही होता है. धर्मशास्त्र में भी इस बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. सूर्य के कन्या राशि में आने की वजह से परलोक से पितृ अपने स्वजनों के पास आ जाते हैं.
देव तुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वजों की ही गिनती की जाती है. पिता को वास्तु के समान, रूद्र दादा के समान और परदादा आदित्य के समान माने गए हैं. इसके पीछे एक मुख्य वजह यह भी मानी जाती है कि मनुष्य को केवल तीन पीढियां तक का ही स्मरण रहता है.
कौन कर सकता है पितरों का तर्पण
चाहे पुत्र हो, पौत्र हो, भतीजा, भांजा कोई भी श्राद्ध कर सकता है. इसके विपरीत, जिस घर में पुरुष सदस्य नहीं है लेकिन पुत्री के कुल में है तो धेवता और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं. कुत्ता, गाय और कौआ को यम का प्रतीक माना जाता है और गाय को वैतरिणी पार करने वाली कहा जाता है. कौआ भविष्यवक्ता और कुत्ते को अनिष्ट का संकेतक माना जाता है. इसी वजह से श्राद्ध में इनको भोजन कराया जाता है. हमें इस बारे में जानकारी नहीं होती की मृत्यु के बाद हमारे पित्रों का जन्म किस योनि में हुआ है. इसी वजह से हम उनके प्रतीक स्वरूप गाय, कुत्ते और कोए को भोजन करवाते हैं.
डिस्केलमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ मान्यताओं/ धर्मग्रंथों पर आधारित हैं. Haryana E Khabar इनकी पुष्टि नहीं करता है.
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