ज्योतिष | इस वक्त सावन का पवित्र महीना चल रहा है. सावन का महीना (Sawan 2023) भगवान शिव और माता पार्वती को बहुत प्रिय है. माना जाता है कि इसी सावन के महीने में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी. तब भगवान शिव प्रसन्न हुए और माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. दरअसल, राजा दक्ष प्रजापति को भगवान शिव पसंद नहीं होने के पीछे कई तरह की पौराणिक कहानियां हैं.
आखिर राजा दक्ष प्रजापति कौन थे?
राजा दक्ष प्रजापति एक प्रतापी राजा थे. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने राजा दक्ष को मानस पुत्र के रूप में जन्म दिया था. दक्ष प्रजापति का विवाह अस्कनी से हुआ था. वह भगवान विष्णु के परम भक्त थे. महाराजा दक्ष की 16 बेटियां थीं जिसमें सबसे छोटी बेटी का नाम सती (पार्वती) था. पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी. यह बात राजा दक्ष को बिल्कुल नागवार गुजरी.
राजा दक्ष भोलेभंडारी से क्यों चिढ़ते थे?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष और भगवान शिव के बीच कड़वाहट के 3 कारण हैं:
एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्रारंभ में ब्रह्मा के 5 सिर थे. ब्रह्मा के 3 सिर सदैव वेदों का पाठ करते थे लेकिन उनके 2 सिर वेदों को भला- बुरा कहते थे. इस आदत से भगवान शिव हमेशा क्रोधित रहते थे, फिर एक दिन इससे क्रोधित होकर उन्होंने ब्रह्राजी का 5वां सिर काट दिया. दक्ष प्रजापित अपने पिता ब्रह्मा का सिर काटने के कारण भगवान शिव से क्रोधित रहते थे.
एक अन्य मान्यता के अनुसार, पार्वती जी का जन्म राजा दक्ष के यहां सती के रूप में हुआ था. सती के रूप में माता पार्वती भगवान शिव से ही विवाह करना चाहती थीं लेकिन, सती के पिता राजा दक्ष को लगता था कि भगवान शिव सती के योग्य नहीं हैं. इसी कारण से जब उन्होंने अपने राज्य में सती के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था तो शिवजी को आमंत्रित नहीं किया. हालांकि, सती ने मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करती थीं. स्वयंवर में सती ने भगवान शिव का नाम लेकर पृथ्वी पर वरमाला डाल दी, तब शिव स्वयं वहां प्रकट हुए और सती द्वारा फेंकी गई माला को पहन लिया. इसके बाद, शिव ने सती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया और वहां से चले गए. राजा दक्ष को यह बात पसंद नहीं थी कि सती ने उनकी इच्छा के विरुद्ध शिव से विवाह किया था.
प्रचलित कथाओं के अनुसार एक बार यज्ञ का आयोजन किया गया था जिसमें सभी देवी- देवता पहुंचे थे. इस यज्ञ में जब राजा प्रजापति पहुंचे तो सभी देवी- देवताओं और अन्य राजाओं ने खड़े होकर राजा दक्ष का स्वागत किया परंतु, शिवजी ब्रह्माजी के पास ही बैठे रहे. यह देखकर महाराजा दक्ष ने इसे अपना स्वयं का अपमान समझा और शिव भगवान के प्रति अनेक अपमानजनक शब्द कहे. दोनों के बीच दरार का यह महत्वपूर्ण कारण है.
यज्ञ में भगवान शिव को निमंत्रण न देना
एक बार राजा दक्ष ने अपने महल में एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने सभी को आमंत्रित किया था लेकिन, इस यज्ञ में भगवान शिव और माँ सती को आमंत्रित नहीं किया गया. तब यज्ञ के बारे में जानकर देवी सती बिना बुलाए अपने पिता राजा दक्ष के घर चली गईं. जहां दक्ष प्रजापति ने भरी सभा में सबके सामने भगवान शिव और सती का अपमान किया, तब सती अपने पति भोलेनाथ का अपमान सहन नहीं कर सकीं और यज्ञ स्थल पर जल रही अग्नि में कूदकर स्वयं को भस्म कर लिया.
शिवजी का तांडव
जब सती के भस्म होने की खबर शिवजी को मिली तो वे क्रोधित होकर यज्ञ स्थल पर पहुंचे और सती के अवशेषों को लेकर तांडव करने लगे. तब भगवान शिव ने वीरभद्र को बनाया और यज्ञ स्थल पर उपस्थित सभी लोगों को दंडित करते हुए राजा दक्ष का सिर काट दिया. बाद में ब्रह्मा के अनुरोध पर भगवान शिव ने दक्ष प्रजापति के सिर के स्थान पर बकरे का सिर प्रदान करके यज्ञ को पूरा किया. ऐसा माना जाता है कि वीरभद्र भगवान शिव की तीसरी आंख से प्रकट हुए थे.
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