हिंदू-मुस्लिम एकता की गवाही देती हैं ये दरगाह, बहुत ही अनोखा हैं इसका इतिहास

कैथल । हरियाणा के कैथल जिले में मौजूद एक दरगाह आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम कर रही है. शहर के जवाहर पार्क स्थित बाबा शाह कमाल दयाल की इस दरगाह की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस दरगाह के पूजारी हिंदू धर्म से है. हिंदू धर्म के लोग यहां पूजा करने आते हैं तो मुसलमान शीश नवाते हैं.

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दरगाह पर सोमवार से तीन दिवसीय वार्षिक उर्स मेले की शुरुआत हो गई है. इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने विश्व प्रसिद्ध कव्वाल जनाब असलम साबरी बाबा का गुणगान करने के लिए पहुंचेंगे. तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में दोपहर 12 बजे से तीन बजे तक और शाम सात से 9 बजे तक भंडारा लगाया जाता है, जबकि शाम 6 बजे चादर चढ़ाने की रस्म अदा की जाएगी.

दरगाह के गद्दीनशीन बाबा राजनीश शाह ने बताया कि यहां पर चादर चढ़ाने की रस्म के तहत पहली चादर बाबा शीतलपुरी डेरे से आती है. इसके बाद श्रद्धालुओं की ओर से चादर चढ़ाने की रस्म शुरू हो जाती है. इस दरगाह का जीर्णोद्धार एक हिंदू व्यक्ति स्व. रोशन लाल गुप्ता ने करवाया था. उन्होंने काफी लंबे समय तक इस दरगाह की देखभाल की थी.

जारी हैं वर्षों पुरानी परंपरा

सालों बाद आज भी इस दरगाह पर एक परम्परा का निर्वाह किया जा रहा है. बाबा शीतलपुरी के डेरे में बाबा की समाधि के निकट बाबा शाह कमाल की ज्योत जलाई जाती है. जब भी शाह कमाल का उर्स मेला लगता है तो बाबा शीतलपुरी के डेरे से सबसे पहली चादर शाह कमाल की दरगाह पर चढ़ाई जाती है. इसी तरह जब शीतलपुरी के डेरे पर मेला लगता है तो बाबा शाह कमाल की दरगाह से आदर स्वरूप बाबा की समाधि पर पगड़ी भेजी जाती है.

दरगाह का इतिहास

इतिहासकार बताते हैं कि हजरत बाबा शाह कमाल कादरी 429 वर्ष पूर्व बगदाद से कैथल आए थे और वे मुस्लिमों के पैगंबर हजरत गोसपाक महीउद्दीन की 11वीं पुश्त थे. उस समय दिल्ली पर औरंगजेब की सल्तनत थी और वह हिंदूओं को जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर कर रहा था. बाबा शीतलपुरी धर्म परिवर्तन के खिलाफ थे और उन्होंने नवाबों की हर चाल को विफल कर दिया.

नवाबों ने दिल्ली पहुंचकर औरंगजेब के दरबार में हाजिरी लगाई तो औरंगजेब ने बाबा शीतलपुरी की शक्ति परीक्षण के लिए बगदाद से शाह कमाल को कैथल भेजा. शाह कमाल शेर पर सवार होकर कैथल में शीतलपुरी से शास्त्रार्थ करने पहुंचे. बताते हैं उस समय बाबा शीतलपुरी एक दीवार पर बैठे दातुन कर रहे थे. उनके सम्मान में उन्होंने दीवार से कहा कि ये फकीर इतनी दूर से चलकर आए हैं और तू इनके मान-सम्मान में चार कदम भी नहीं चल सकती. इतने में दीवार आगे चल पड़ी. शाह कमाल कादरी बाबा के चमत्कार से इतने प्रभावित हुए कि वे वापस बगदाद नहीं गए और कैथल के ही होकर रह गए.

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