कैथल में काली माता का मंदिर का महाभारत काल से है जुड़ाव, यहाँ पढ़ें इसका रोचक इतिहास

कैथल | हरियाणा के जिला कैथल में एक ऐसा मंदिर स्थित है, जिसे महाभारत काल में पांडव पुत्र युधिष्ठिर ने कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी. यही कारण है कि माता गेट स्थित शहर के ऐतिहासिक सूर्यकुंड डेरा में स्थित काली माता का मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है. यह कुरूक्षेत्र के 48 कोस के दायरे में आता है. आईए जानते हैं मंदिर की विशेषता के बारे में…

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बाजीगर समाज की है कुल देवी

काली माता का मंदिर बाजीगर समाज की कुल देवी मानी जाती है. इसलिए चैत्र मास की अमावस्या और प्रथम नवरात्रि पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. इस बार चैत्र नवरात्रि सोमवार से शुरू हो रही है. इस अवसर पर यहां 2 दिवसीय मेले का आयोजन किया जायेगा. मंदिर प्रशासन की ओर से इस मेले की तैयारियां जोरों पर हैं. इनके तहत, मंदिर परिसर में भव्य रोशनी शुरू कर दी गई है.

50 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद

हर साल की तरह लगने वाले इस दो दिवसीय मेले में इस बार 50 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है. ये श्रद्धालु हरियाणा समेत पंजाब, यूपी, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से भी पहुंचेंगे. बच्चों के झूले आदि लगाना भी शुरू कर दिया है. इसके साथ ही, मेले में आने वाले लोगों के लिए अस्थायी शौचालय और स्नानघर का निर्माण भी शुरू कर दिया गया है.

200 से अधिक सेवादार रहेंगे तैनात

महंत रमनपुरी ने बताया कि डेरा परिसर में स्थित काली माता का मंदिर बाजीगर समुदाय की कुल देवी का मंदिर है. उन्होंने बताया कि इस बार मेले के दोनों दिन जाम से बचने के लिए चीका बाईपास से सीवन गेट और माता गेट से कमेटी चौक तक का रूट डायवर्ट किया जाएगा. इसके लिए पुलिस प्रशासन से अनुरोध किया गया है. बताया कि मेले में दो दिनों तक 200 से अधिक सेवादार तैनात रहेंगे.

ये है मंदिर का प्राचीन इतिहास

महंत रमनपुरी ने बताया कि डेरे में स्थित काली माता का मंदिर आजादी से पहले बाजीगर समुदाय के बुजुर्ग कालवा पीर महाकाली के कट्टर भक्त थे. वह लाहौर में रहते थे. एक बार वह देवी काली की पूजा कर रहे थे. रात को जब वह सोये तो स्वप्न में माँ काली ने दर्शन दिये, फिर कहा कि सुबह तुम्हे एक बकरा दिखेगा, तुम उसके साथ चलना. यह बकरा जहां भी रुके, वहीं मेरा मंदिर बनाना और वहीं पूजा करना. माँ के कहे अनुसार, बकरा सूर्यकुण्ड डेरे पर आकर रहने लगी. इसके बाद, कालवा पीर यहीं आकर बस गये. इस समय भी कालवा पीर की समाधि बनी हुई है और उनकी चिता जलाई गई है. तभी से यहां बाजीगर समुदाय की कुल देवी का मंदिर बना हुआ है.

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