कैथल । हरियाणा के कैथल जिले में स्थित एक डेरा, जिसे दूधाधारी बाबा के डेरे के नाम से भी जाना जाता है, दूर- दूर तक प्रसिद्धि बटोर रहा है. यह डेरा हरियाणा में पशुओं की सुख- शांति के लिए विख्यात है और ऐसी मान्यता है कि यहां दूध चढ़ाने से पशुधन में वृद्धि होती है.
बता दें कि कैथल जिले के गांव बाबा लदाना में स्थित डेरा बाबा राजपुरी का इतिहास 550 साल पुराना है. बाबा राजपुरी से जुड़ी पशुओं से संबंधित एक रोचक कहानी भी है. डेरे के महंत बाबा दूजपुरी ने बताया कि करीब 500 वर्ष पहले बाबा राजपुरी गांव बाबा लदाना और गांव अटैला के बीच से गुजर रहे थे. उस समय आस-पास के कई गांव के भैंस चराने वाले पाली एक स्थान पर हजारों भैंसों को बैठा कर रखते थे. एक दिन उनके पास से बाबा राजपुरी जा रहे थे तो वहां मौजूद पाली ने कहा कि बाबा यहां से मत जाओ हमारी भैंस बैठी हुई हैं और ये उठ जाएंगी. बाबा राजपुरी ने कहा कि अब ये भैंसें नहीं उठेंगी और इतना कह कर वहां से आगे की ओर बढ़ गए.
मांगनी पड़ी माफी
कुछ देर बाद जब पाली भैंसों को घर ले जाने के लिए उठाने लगे तो एक भी भैंस नहीं उठी. यह देखकर पाली चिंता में पड़ गए कि एक भी भैंस क्यों नहीं उठ रही है. तब वहां मौजूद लोगों को अहसास हुआ कि यह सब बाबा के चमत्कार की देन है. इसके बाद सभी पाली इकट्ठा होकर बाबा के पास पहुंचे और उनसे उनका रास्ता रोकने को लेकर माफी मांगी. तब बाबा ने कहा कि जाओ, तुम्हारी सब भैंस उठ जाएगी लेकिन एक भैंस नहीं उठेगी और हुआ भी कुछ ऐसा ही. तभी से पशुओं की सुख-शांति के लिए बाबा राजपुरी की पूजा की जाती है.
महंत तोतापुरी की तपोस्थली है डेरा
यह डेरा स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस और उनके गुरु महंत तोतापुरी महाराज की तपो स्थली रहा हैं और यहां महंत तोतापुरी की समाधि भी है. महंत दूजपुरी ने बताया कि माता हिंगलाज अष्टमी की रात को डेरे में स्थित मंदिर में आती हैं और वर्षों पुराने जाल के पेड़ पर धागा बांधकर जाती हैं. दशहरा के दिन जाल के पेड़ पर बाबा राजपुरी और माता हिंगलाज की पूजा कर ध्वजा चढ़ाई जाती है.
पूजा के लिए आते हैं लाखों श्रद्धालु
डेरे के महंत दूजपूरी महाराज ने बताया कि डेरे में हर वर्ष दशहरे, एकादशी और द्वादशी को विशाल मेला लगता है और पूरे हरियाणा से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं. डेरे में तीन दिन तक लगातार मेला लगता है. जिला प्रशासन की तरफ से भी मेले को लेकर सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए जातें हैं और कैथल रोड़वेज विभाग की ओर से मेले के लिए स्पेशल बसें चलाई जाती है.
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