हरियाणा में भाजपा-जजपा गठबंधन पर किसान आंदोलन की गहरी मार, दबाव में आ रहे चौटाला

करनाल | किसान आंदोलनको लेकर बीते रविवार का दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा जा सकता है क्योंकि यह दिन हरियाणा की राजनीति के लिए सबसे अहम दिन रहा है. यहां केंद्र सरकार से नाराज हुए किसानों ने करनाल के कैमला गांव में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की महापंचायत को रद्द करवाया है. राजनीतिक जानकारों ने स्पष्ट रूप से अपनी बात रखते हुए कहा है कि हरियाणा में भाजपा जजपा गठबंधन पर किसान आंदोलन की गहरी चोट पड़ी है.

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लोग जजपा के अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला से समर्थन वापिस लेने की कर रहे हैं मांग

किसानों की ओर से राजनीति करने वाले बड़े नामों में मशहूर रहे भूतपूर्व उप प्रधानमंत्री स्वः चौ. देवीलाल जी के परिवार से आने वाले डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला अब इस घटना के बाद से काफी ज्यादा दबाव में आ गए हैं. राजनीतिक सलाहकारों का मानना है कि अगर ऐसे में किसान आंदोलन लम्बा चलता है तो जजपा के अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला पर भी यह दबाव बढ़ सकता है कि हरियाणा में उनकी पार्टी भाजपा केन्द्र सरकार में समर्थन देना जारी रखती है या फिर वापस लेने का ऐलान भी जल्द ही कर सकती है.

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उस समय पर दुष्यंत चौटाला का भाजपा को समर्थन देना थी मजबूरी

प्रदेश की राजनीति के जानकार चंद्र प्रकाश जी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि जब प्रदेश में भाजपा और जजपा का गठबंधन हुआ था ,तो उस समय भी जज्बा को सपोर्ट करने वाले लोग इस गठबंधन को लेकर खुश नहीं थे. ऐसा केवल इसलिए हुआ था क्योंकि इसमें हमेशा से ही कृषक वर्ग के लोगों की अच्छी खासी संख्या रही है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि उस समय पर भाजपा सरकार को समर्थन देना दुष्यंत चौटाला की मजबूरी हो, क्योंकि तब हरियाणा में लगभग डेढ़ दशक से चौटाला परिवार सत्ता से बाहर रहा था.

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बढ़ रहा है दुष्यंत चौटाला पर दबाव

बीते कुछ समय में विधानसभा का उपचुनाव भाजपा हार गई और साथ ही साथ जज्बा के हाथ पूरी तरह से खाली रहे. बीते दिसंबर के माह में जब दुष्यंत चौटाला ने दिल्ली मे किसानों की मांगों को लेकर केंद्रीय मंत्रियों से विचार विमर्श किया तब तो उन्होंने नपा तुला बयान दिया था. ऐसे में दुष्यंत ने कृषि बिलों को लेकर कुछ कहने की बजाए एमएसपी पर ही पूरा जोर दे दिया था. उन्होंने कहा कि एमएसपी के साथ कुछ भी छेड़छाड़ किया जाता है तो पहला त्यागपत्र मेरा यानी दुष्यंत चौटाला का होगा.

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ऐसे में किसानों को उनकी यह बात रास नहीं आई और फिर वे त्यागपत्र की मांग करने लगे. अब किसान आंदोलन धीरे धीरे उग्र स्थिति की ओर रुख कर रहा और अब इस समय पर भी दुष्यंत चौटाला चुप हैं. अब उपचुनाव और स्थानीय निकाय के नतीजे यह समझने के लिए संतोषजनक हैं कि दरअसल,अब प्रदेश में भाजपा और जजपा के लिए माहौल संतोषजनक नहीं है.

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