करनाल I करनाल के प्रगतिशील किसानों द्वारा धान के अवशेष का तोड़ खोज लिया है .धान के वेस्ट डी कंपोजर से अब किसानों द्वारा खाद बनाई जा रही है. कुछ ही समय पहले लगभग 50 किसानों ने मिलकर जैविक व प्रदूषण मुक्त खेती करने का दृढ़ निश्चय किया था और तुरंत बाद ही वह अपने निश्चय के प्रयास को सफल करने में जुट गए. यही कारण है कि 50 किसानों का यह समूह अब 500 से अधिक में तब्दील हो चुका है. इन्होंने अपनी फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन बना ली है.
करनाल के किसानों के इस ग्रुप ने न केवल लोगों को मिल रहे रसायनयुक्त भोजन के प्रति अपनी चिंता दर्शाई, अपितु फसलों के अवशेषों के जलाने से हो रहे पर्यावरण प्रदूषण की चिंता भी जताई है .किसानों ने देशभर के कई शोध संस्थानों में ट्रेनिंग ली और इस दौर में उनका संपर्क गाजियाबाद के राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र से हुआ.संस्थान के निदेशक डॉ. किशन चंद्रा जी से किसानों ने अवशेषों की दिक्कत को सांझा किया. संस्थान द्वारा तैयार किए गए वेस्ट डी कंपोजर के बारे में किसानों को विस्तृत रूप से जानकारी देते हुए उन्हे अवगत कराया. इन किसानों ने इस वेस्ट डी कंपोजर को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. अवशेषों को इस सोल्यूशन की सहायता से आसानी से गलाया जा सकता है.
करीब 2500 एकड़ में नहीं जलेंगे अब से धान के अवशेष:
प्रगतिशील किसानों का यह समूह करनाल क्षेत्र में 2500 एकड़ से अधिक में खेती कर रहा है व सीजन में कैमिकल फ्री गेहूं तैयार किए, और इस बार 90 एकड़ में केमिकल फ्री धान लगाई हुई है. पर्यावरण को साफ व स्वच्छ करने के लिए इस ग्रुप में धान ना जलाने का फैसला लिया है, जिससे हमारे वातावरण को शुद्ध रखा जा सके एवं कोई हानि न हो.
कैसे काम करता है ये वेस्ट डी कंपोजर:
गाय के गोबर व बैक्टीरिया आदि से तैयार किया जाता है यह वेस्ट डी कंपोजर. राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र गाजियाबाद द्वारा तैयार किया कंपोजर एक 200 एम एल की पैकिंग में उपलब्ध है 200 लीटर पानी और ढाई किलो गुड़ की आवश्यकता होती है एक एकड़ भूमि के अवशेष को गलाने व उसका सॉल्यूशन बनाने के लिए. लगभग 5 दिन के अंदर यह सॉल्यूशन बनाकर तैयार कर दिया जाता है . अब सॉल्यूशन को पानी के जरिये खेत में डाला जाता है.15 से 20 दिन में 70 प्रतिशत अवशेष गल जाते हैं, एक माह में 100 प्रतिशत अवशेष गल जाते हैं. इस प्रकार पेस्टिसाइड्स के उपयोग के बिना ही ये वेस्ट डी कंपोजर काम करता है.
उत्पादन में 10 फीसद तक की होगी शुरू बढ़ोतरी:
फसलों के अवशेष न जलाने व ग्रीन मैन्योरिंग करने से उत्पादन में भी निश्चित तौर वृद्धि हुई है. डॉ. एसपी तोमर के मुताबिक 10 से 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी इस प्रक्रिया से ही हुई है.अवशेष खाद का काम करते हैं. किसानों को जागरूक होने की जरूरत है. भविष्य में यदि स्वास्थ्य को ठीक रखना है तो प्रदूषण व रसायनों से बचाना होगा, क्योंकि पर्यावरण की रक्षा करना हमारे लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्य है. यह कार्य भी लगभग 50 लोगों से शुरू हुआ था किंतु आज यह 500 लोगों का एक समूह है .प्रकृति हमसे कुछ नहीं मांगती केवल हमें देती ही हैं इसलिए हर कदम पर किसान भाइयों को इस ग्रुप का साथ अवश्य देना चाहिए l
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