करनाल | हरियाणा के करनाल (Karnal) जिले के पबाना हसनपुर गांव के संजय ने गार्ड की नौकरी छोड़कर मधुमक्खी पालन (Beekeeping) शुरू किया. कभी 10 हजार रुपये की नौकरी करने वाले संजय आज 30 से 40 लाख रुपये सालाना कमा रहे हैं. मधुमक्खियों के 9 बक्सों से शुरुआत करने वाले संजय आज 50 बक्सों से शहद का उत्पादन कर रहे हैं. आईए आपको बताते हैं पूरी कहानी….
संजय ने बताया कि उन्होंने बीए किया और नौकरी की तलाश में निकले, काफी भागदौड़ के बाद उन्हें जेएनयू में गार्ड की नौकरी मिल गई. 12 घंटे की नौकरी से उन्हें केवल 10,000 रुपये मिलते थे, लेकिन वह इस नौकरी से बिल्कुल भी खुश नहीं थे. फिर उन्हें शहद बेचने का आईडिया आया.
ऐसे शुरू किया मधुमक्खी का पालन का कार्य
संजय बताते हैं कि वह अपने साथी किसानों के साथ हिमाचल के सोलन पहुंचे और वहां मधुमक्खी के बक्से खरीदे. उन्हें एक डिब्बा तीन हजार रुपये में मिला. उन्होंने 9 बक्से खरीदे थे. प्रत्येक बॉक्स में 9 फ़्रेम स्लाइड हैं, जिसमें मधुमक्खियाँ शहद बनाती हैं. उनके परिवार के सदस्य वर्ष 2000 से पहले भी मधुमक्खी पालन का काम करते थे, लेकिन उन्होंने कभी बड़े पैमाने पर काम करने के बारे में नहीं सोचा था.
उन्होंने 10- 12 साल पहले मधुमक्खी पालन शुरू किया था. शुरुआती दौर में उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली. वह शहद बेचकर ही अपना जीवन यापन कर रहे थे. ऐसा 5- 6 साल तक चलता रहा. वह अपने काम का विस्तार करना चाहते थे. फिर धीरे- धीरे डिब्बों की संख्या बढ़ानी शुरू कर दी.
कोरोनाकाल में हुआ घाटा
2020 तक उनके पास 100 से ज्यादा बक्से हो गए और टनों में शहद का उत्पादन होने लगा, लेकिन कोरोना संकट का उन पर भी भारी असर पड़ा. इसलिए घाटा होने लगा. जिसके बाद, बक्सों की संख्या भी घटती चली गई और आज वह केवल 40 से 50 बक्सों तक ही शहद का उत्पादन कर रहे हैं, लेकिन फिर भी अच्छी आमदनी कमा रहे हैं. संजय का लक्ष्य पहले की तरह 100 से ज्यादा बॉक्स शहद का उत्पादन करने का है.
पूरे भारत में शहद की हो रही आपूर्ति
संजय ने बताया कि शहद की मांग न केवल स्थानीय क्षेत्र में बल्कि दूसरे राज्यों में भी है और डिलीवरी वह खुद करते हैं. संजय बताते हैं कि वह जब भी प्रदर्शनी में स्टॉल लगाते हैं तो शहद के गुणों के बारे में बताते हैं. सर्दियों में शहद सबसे ज्यादा बिकता है. उत्पादन नवंबर में शुरू होता है और अप्रैल महीने तक जारी रहता है. आय बाजार पर निर्भर करती है.
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