हरियाणा का प्रीतम सिंह बीज उत्पादन शुरू कर हुआ मालामाल, जानें क्या है इस खेती का तरीका

करनाल | देशभर में समय के साथ खेती करने का तरीका बदलता जा रहा है. केन्द्र और राज्य सरकारों की बदौलत बहुत से किसान परम्परागत खेती का मोह त्याग कर बागवानी और आर्गेनिक खेती करने में रूचि दिखा रहे हैं और इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं. बहुत से ऐसे किसानों की गिनती प्रगतिशील किसानों के रूप में हो रही है और वे अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन रहें हैं. ऐसा ही एक उदाहरण हरियाणा के पानीपत जिले के मतलौडापुर के रहने वाले किसान प्रीतम सिंह ने पेश किया है.

Kisan Haryana Karnal

नई शुरुआत से जीवनस्तर बढ़ा

किसान प्रीतम सिंह ने बताया कि गेहूं और चावल की परम्परागत खेती से बस जीवनयापन ही हो रहा था. इसके बाद उन्‍होंने पूसा से संपर्क किया और वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन से नई फसल की शुरुआत की. आज उनकी गिनती न केवल प्रगतिशील किसानों में होती है बल्कि हरियाणा, पंजाब और यूपी के किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने में भी वो मदद कर रहे हैं.

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पूसा की मदद से आमदनी में इजाफा

प्रीतम सिंह ने बताया कि पारम्परिक खेती से मुश्किल से घर खर्च चल रहा था. इसी दौरान पता चला कि इंडियन एग्रीकल्‍चर रिसर्च इंस्‍टीट्यूट-पूसा (IARI), करनाल किसानों से बीजों का उत्‍पादन कराता है. इसमें हर तरह की मदद भी करता है और इस बीज को पूसा स्‍वयं अच्‍छे रेटों पर खरीदता भी है, जिससे कमाई भी अच्‍छी होती है. उन्‍होंने IARI करनाल के संपर्क किया. पूसा ने पहले उन्‍हें प्रशिक्षण दिया और उसके बाद जलवाऊ और मिट्टी के अनुकूल बीज भी उपलब्‍ध कराया. उन्‍होंने बीज उत्‍पादन के रूप में खेती में नई शुरुआत की.

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उन्होंने बताया कि इस बीज को बेचने के लिए उन्हें बाजार में भागदौड़ करने की जरूरत नहीं पड़ी बल्कि पूसा ने ही उनके बीजों को खरीद लिया. इसके बाद IARI- पूसा दिल्‍ली ने उनसे बीज उत्‍पादन करने को कहा. उन्‍होंने पूसा दिल्‍ली के वैज्ञानिकों के निर्देशन में बीज का उत्‍पादन शुरू किया.

किसानों को मुहैया करा रहे बीज

उन्होंने बताया कि आज वो 90 एकड़ जमीन पर पूसा वैज्ञानिकों के सहयोग से बासमती और गेंहू का उत्‍पादन करते हैं. आज वे 500 से 600 क्विंटल अलग- अलग वैराइटी का बासमती चावल और गेंहू के बीज का उत्‍पादन करते हैं. मौजूदा समय में पूसा को एक करोड़ रुपये के बासमती के और करीब 50 लाख रुपये के गेंहू के बीज दे रहे हैं. इसके अलावा, हरियाणा, पंजाब और यूपी सहित कई अन्य राज्यों के किसानों को बीज मुहैया करा रहे हैं, जिससे उनका फ़सल उत्पादन बढ़ा है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है.

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डेढ़ गुना तक कमाई

प्रगतिशील किसानों में शुमार प्रीतम सिंह ने बताया कि परम्परागत फसल की खेती की तुलना में बीज उत्पादन में करीब 10% लागत ज्यादा रहती है क्योंकि इस फसल को पूरी तरह से खरपतवार से बचाना होता है. ऐसे में अधिक देखभाल और लेबर की जरूरत ज्यादा पड़ती है. उन्होंने बताया कि लागत भले ही ज्यादा पड़ती है लेकिन परम्परागत खेती की तुलना में डेढ़ गुना तक अधिक मुनाफा होता है. अगर किसी के पास जमीन कम है तो वह बीज उत्पादन शुरू कर अपनी आमदनी में बढ़ोतरी कर सकता है.

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