करनाल I 1983 अध्यापकों को भर्ती में गड़बड़ी के चलते हटाया गया था. नियुक्तियों में अनियमितता के चलते हुड्डा सरकार में भर्ती किये गए इन टीचर्स को हाईकोर्ट ने हटाने का आदेश दिया जिसके बाद इन अध्यापकों ने सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा था.
विदित है कि 2012 से चल रहे मामले इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस भर्ती को निरस्त कर पुनः करने उस आदेश को बनाये रख कर इन पीटीआई अध्यापकों को तगड़ा झटका दिया था. 2012 में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने , 2013 में खण्ड पीठ ने और 2020 में उच्चतम न्यायालय ने अपने अपने फैसले सुनाए थे.
यह भर्ती जुलाई 2006 में कर्मचारी चयन आयोग ने आवेदन मांगे थे जिसके लिए जनवरी 2007 में लिखित परीक्षा आयोजित होनी तय थी लेकिन गड़बड़ी की शिकायतों के चलते परीक्षा स्थगित कर दी गयी थी. इसी क्रम में पुनः जुलाई 2008 में सम्भावित परीक्षा को प्रशासनिक वजहों से रद्द कर दिया था. सबसे बड़ी बात इसके बाद कोई परीक्षा न करवाकर आयोग ने इन उम्मीदवारों को सीधे साक्षात्कार के लिए बुला लिया जिसमे तय पदों से 8 गुना अधिक उम्मीदवार थे. सितम्बर-अक्तूबर 2008 में इन उम्मीदवारों के इंटरव्यू ले लिए गए लेकिन खास बात यह रही कि पहले 25 अंकों का इंटरव्यू व 30 अंक का कर दिया गया. 2010 में हुड्डा सरकार ने इस भर्ती का परिणाम घोषित कर दिया और पीटीआई के 1983 पदों पर इन अधयापकों को नियुक्त कर दिया. लेकिन हाई कोर्ट ने इसको निरस्त कर दिए.
सितम्बर 2012 में पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के जस्टिस ए जी मसीह ने 68 याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए हुड्डा सरकार में हुई इस भर्ती के तहत हुई 1983 नियुक्तियों को रद्द कर दिया था और साथ ही आयोग को नए सिरे से भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए थे और इसे 5 माह के अंदर पूरा करने को कहा था क्योंकि ये नियुक्तियां नियमो के तहत न होने के कारण अवैध है.
खास बात उच्च न्यायालय ने आयोग पर भी इस भर्ती में अनियमितताओ के कारण सवाल उठाया था. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए याचिकाकर्ताओं के द्वारा खण्डपीठ में अपील करने के फैसले पर दो सदस्यीय पीठ ने आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए और कहा कि बहुसदस्यीय होने के बावजूद ऐसा लग रहा है कि आयोग एक व्यक्ति के इशारे पर ही काम कर रहा है. खंडपीठ ने आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष पर भी कठोर और प्रतिकूल टिप्पणी की थी.
बता दे कि इस भर्ती में ऐसे ऐसे उम्मीदवारों का चयन किया गया था जिन्होंने पीटीआई का डिप्लोमा पहले कर लिया था और दसवीं की परीक्षा बाद में पास की. कुछ उम्मीदवारों ने चयन होने के बाद आवेदन फार्म को जमा करवाया था वही कुछ ने निर्धारित फीस का भी भुगतान नहीं किया था. कई उम्मीदवार ऐसे थे जो जरूरी न्यूनतम योग्यता को भी पूरा नहीं करते थे. कई उम्मीदवार बाहर के राज्यों से भी डिप्लोमा सर्टिफिकेट लेकर आये थे वहीं कुछ के परिणाम की तिथि को बदल दिया था. कई रिजर्व श्रेणी के उम्मीदवारों को जनरल कैटेगरी में तब्दील कर दिया था. कई पुरूष उम्मीदवारों का महिला के लिए आरक्षित सीटों पर चयन कर दिया गया था.
उच्च न्यायालय ने कर्मचारी चयन आयोग और हरियाणा सरकार पर खंडपीठ में अपील दायर करने पर फटकार और जुर्माना दोनों लगाए जो किसी भी राज्य सरकार के लिए शर्मनाक बात होती है. खंडपीठ ने एकल बेंच के फैसले पर अपील दायर करने के लिए सरकार को प्रत्येक अपील पर 10 हज़ार, आयोग को प्रत्येक अपील के लिए 50 हज़ार और उम्मीदवारों पर भी 10 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया. कोर्ट ने पूरी भर्ती को गड़बड़ियों और धांधली से सज्जित बताया जो योग्य उम्मीदवारों के लिए बड़ा आघात है. डिवीजन बेंच ने कहा कि भर्ती को जानबूझकर लीपापोती और जल्दबाजी में निपटाया गया तथा कई ऐसे उम्मीदवारों के भर्ती करने पर हैरानी जताई जो अधिकतम उम्र सीमा पार कर चुके थे.
वर्तमान खट्टर सरकार ने न्यायालय के आदेश की पालना करते हुए पुनः इस भर्ती के लिए उस समय आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के लिए पुनः परीक्षा का आयोजन किया था जिसमे लगभग 8000 उम्मीदवार शामिल हुए थे. आयोग ने उत्तर कुंजी डालने के साथ साथ उम्मीदवारों को उत्तर कुंजी पर ऑब्जेक्शन लगाने का मौका भी दिया था जिसके बाद इस भर्ती का अंतिम परिणाम घोषित कर दिया था, लेकिन भर्ती में निर्धारित पदों से कम उम्मीदवार की कट ऑफ को पार कर पाए और कई पद खाली रह गए थे. अभी चयनित उम्मीदवारों की नियुक्ति आदेश जारी नही किये गए है, बता दे कि 1983 में से सिर्फ 120 उम्मीदवार ही परीक्षा में बैठे थे बाकी ने यूनियन बनाकर इस परीक्षा का बॉयकाट किया था.
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