कुरुक्षेत्र | कहते हैं इंसानियत की सेवा से बढ़कर इस दुनिया में कोई और पुण्य का काम नहीं है. फिल्मी पर्दे पर अक्सर हम ऐसा देखते हैं कि कोई अचानक से हीरो बनकर आता है और लोगों की मदद करता है. लेकिन असल जिंदगी में हीरों बनना बहुत ही कठिन काम है. तो आज यहां हम जिस रियल हीरो की बात कर रहे हैं वो अपनी जान जोखिम में डालकर हजारों लोगों को मौत के मुंह से बचा चुका है.
हम यहां जिक्र कर रहे हैं हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के एक गोताखोर की जिसने अब तक पानी में डूब रहें 2 हजार से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचाई है. इसके अलावा परगट सिंह का नाम का यह गोताखोर 14 खूंखार मगरमच्छों को भी नहर से निकाल कर लोगों की जिंदगी की रक्षा कर चुका है. वहीं, 15 हजार से ज्यादा लाशें भी वो पानी से निकाल चुके हैं.
परगट सिंह का परिचय
कुरुक्षेत्र जिले के दबखेड़ी गांव में जन्मे परगट सिंह की गिनती देश के नंबर वन गोताखोरों में होती है. नहर किनारे गांव होने की वजह से वह बचपन में ही तैराकी में निपुण हो गए थे. खाली वक्त में नहर किनारे भैंसों को चराते थे तो कोई डूबता हुआ दिख गया तो झट से उसे बचाने के लिए पानी में छलांग लगा देते थे. धीरे-धीरे यही आदत जुनून में बदल गई और वो डूबते लोगों के लिए भगवान बनकर प्रकट होने लगें.
जान की नहीं करते परवाह
परगट सिंह ने कई बार अपनी जिंदगी की परवाह किए बगैर ग्रामीणों और मवेशियों के लिए खतरा बनें मगरमच्छों को पकड़ा है. वो नहर से अब तक 14 मगरमच्छों को पकड़कर भौर सैदां स्थित मगरमच्छ प्रजनन केंद्र में पहुंचा चुके हैं. मगरमच्छ को पकड़ने के लिए परगट सिंह बस एक रस्सी का सहारा लेते हैं. रस्सी से सबसे पहले वो मगरमच्छ का मुंह बंद करने की कोशिश करते हैं. जैसे ही फंदा मुंह के पास चला जाता है उसी वक्त साथी के मदद से पकड़ बना लेते हैं. जैसे ही मगरमच्छ काबू में आता है, रस्से से उसे बाहर निकाल लाते हैं. एक बार तो उन्होंने सात फीट लंबे और 100 किलों वजन के मगरमच्छ को पकड़ने में सफलता हासिल की थी.
दादा का शव ढूंढने में हुई दिक्कत
परगट सिंह ने बताया कि साल 2005 में उसके दादा की नहर में डूबने से मौत हो गई थी लेकिन उनकी लाश ढूंढने में खासी मशक्कत करनी पड़ी. तभी उन्होंने ठान लिया था कि नहर में डूबने वालों की मिट्टी को उसके वारिशों को सौंपना है. परगट सिंह की गोताखोरी के चर्चे हरियाणा ही नहीं अपितु पूरे उत्तर भारत में किए जाते हैं. उन्होंने बताया कि वह बिना किसी स्वार्थ भाव से यह काम कर रहे हैं. वह जहां भी किसी को नहर से निकालने के लिए जाते हैं तो किसी से एक रुपया भी नहीं लेते इसलिए हर कोई उनको पसंद करता है.
प्रशासन की बेरुखी से नाराज़
परगट सिंह ने बताया कि समाज सेवा के इस कार्य में उन्हें 23 हो गए हैं और इसके लिए 357 बार वो सम्मानित भी किए जा चुके हैं लेकिन प्रशासन की बेरुखी उनकी हिम्मत तोड़ रही है. एक बार उनको सिर्फ 3 महीने के लिए कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के अंतर्गत ब्रह्मसरोवर में गोताखोर के रूप में रख रखा गया था. 3 महीने पूरे होते ही अधिकारियों द्वारा उनको हटा दिया गया. ऐसे में उन्हें सरकार से नौकरी की उम्मीद लगभग खत्म सी हो गई है.
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