कुरूक्षेत्र । किसानों की धान की फसल लगभग पककर तैयार है. धान की प्रजाति 1121, मुच्छल व बासमती में अब बालियां व दाना तैयार हो रहा है. इस बीच डाक्टरों ने किसानों को गर्दन तोड़ बीमारी के प्रति सचेत रहने को कहा है. डाक्टरों का कहना है कि किसान भाई अपनी धान की फसल का निरीक्षण करें और कही पर धान की बालियां सुखी हुई नजर आ रही है तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लेकर कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें.
डॉ जगबीर लांबा ने बताया कि धान की फसल पकाई के समय अक्सर यह बीमारी देखने को मिलती हैं. शुरुआत में फसल का पत्ता उपर से काला होने लग जाता है और पत्तियों पर नीले या बैंगनी रंग के धब्बे नजर आते हैं. फसल की बालियां सुखने लगती है और तने की गांठें काली होकर आसानी से टूट जाती है. उन्होंने बताया कि यदि समय रहते बीमारी की रोकथाम हेतु प्रयास नहीं किए गए तो इसका सीधा असर पैदावार पर पड़ेगा.
ऐसे आती है बीमारी
डॉ लांबा ने बताया कि अधिक नमी भी इस बीमारी को दस्तक देने की एक प्रमुख वजह है. अनुकूल परिस्थितियों में जब तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस या एक सप्ताह तक नमी 90% से अधिक बनी रहती है तो इस बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है. इस बीमारी से पौधे की बालियां सफेद हो जाती है और इनमें दाने पूरी तरह नहीं बनते.
रोकथाम के उपाय
पत्तियों पर बीमारी के हल्के लक्षण नजर आते ही कार्बेंडाजिम 50 डब्ल्यू पी 400 ग्राम या बीम 120 ग्राम को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें. बालियों पर 50% फूल निकलने पर दोबारा से छिड़काव करें. छिड़काव का समय दोपहर बाद ही रखें. कार्बन डेजियम 300 ग्राम ,जिनेव 500 ग्राम, स्टेप्टोसाइकिलन 6 ग्राम का आठ टंकी घोल बनाकर एक एकड़ में छिड़काव करें.
बता दें कि पिछले वर्ष भी इस बीमारी ने फसल उत्पादन को प्रभावित किया था. डाक्टरों ने सलाह दी है कि किसान साथी ब्लास्ट,काला तेला आदि बीमारियों से भी अपनी फसल का बचाव करें. मौसम परिवर्तनशील होने पर इन बीमारियो का खतरा और बढ़ जाता है.
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