पलवल | हरियाणा के पलवल जिले में एक हफ्ते पहले से ही होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. दरअसल, बंजारी गांव में 300 साल से धूमधाम से होली खेली जा रही है. यहां की होली इतनी मशहूर है कि न सिर्फ आसपास के गांवों से बल्कि दूसरे जिलों से भी लोग इस गांव में पहुंचते हैं. आइए जानते हैं कि बंजारी गांव की यह होली की प्रसिद्धि का कारण…
ग्रामीणों ने बताया कि दक्षिणी भाग बृजभूमि की परंपरा के लिए जाना जाता है. इस बांगर क्षेत्र में होली खेलने का अनोखा अंदाज देखने को मिलता है. पलवल की होडल तहसील के अंतर्गत आने वाले इस बंजारी गांव में होली का त्योहार अनोखे और अलग अंदाज में मनाया जाता है. कहा जाता है कि यहां की होली वृन्दावन और बरसाना की होली से कम नहीं है.
बरसाना और नंदगांव की लट्ठमार होली
बांगड़ में रंगों को पकड़ने के बजाय कपड़ों को मोटी रस्सी में लपेटा जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में “कोर्डा” कहा जाता है. होली खेलने आए जीजा को भाभियां कोड़े से पीटती हैं. राज्य के अधिकांश जिलों में मार- मार कर ही होली खेली जाती है और जीजा-साले को चुपचाप मार सहन करनी पड़ती है. युवा अपनी रक्षा के लिए लाठियों का प्रयोग अवश्य करते हैं. वे जवाबी कार्रवाई नहीं करते, बल्कि बचाव में सिर्फ पानी फेंकते हैं. साथ ही, वे बाल्टी से महिलाओं के हमले को रोकने की भी कोशिश करते हैं.
अलग-अलग सजती हैं टोलियां
कहा जाता है कि पिछले 300 वर्षों से बलदाऊ मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ-साथ होली गायन, होली नृत्य और पिचकारियों से रंग की बौछार करने की परंपरा रही है. इस गांव की खासियत यह है कि यहां होली खेलने आने वाले लोगों के लिए गांव वाले खाने-पीने का भी इंतजाम करते हैं. होली पर बंचारी गांव में हुरियारे और हुरियारिन गायकों की अलग-अलग टोलियां सजती हैं.
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