काम न करने वाले सरपंच हो जाएं सावधान, ग्रामीणों को मिला सरपंच को हटाने का अधिकार

चंडीगढ़ । हरियाणा सरकार ने पंचायती राज से संबंधित एक विधेयक में बड़ा संशोधन किया है. इस संशोधन द्वारा सरकार ने तीन महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं. इन निर्णयों में पंचायती चुनाव में स्त्रियों को 50 प्रतिशत आरक्षण, राइट टू रीकॉल तथा BC-A वर्ग के पिछड़े लोगों को भी 8 प्रतिशत का आरक्षण दिया जाना शामिल है. शुक्रवार को हरियाणा विधानसभा में सरकार ने हरियाणा पंचायती राज विधेयक 2020 को पारित कर दिया व इन महत्वपूर्ण निर्णयों को लागू कर दिया.

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डिप्टी सीएम ने पेश किया राइट टू रिकॉल विधायक

हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला द्वारा इस संशोधन विधेयक को सदन में पेश किया गया. यह विधेयक पूर्ण बहुमत से पास किया गया. इसी सदन में ग्राम पंचायतों के लिए राइट टू रिकॉल विधेयक भी पेश किया गया. यह विधेयक गाँवो के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इस विधेयक के अनुसार यदि कोई सरपंच, ब्लॉक समिति के सदस्य या जिला परिषद के सदस्य ठीक प्रकार से काम ना करें तो उन्हें उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले ही हटाने का अधिकार ग्रामीणों को दे दिया जाएगा.

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जाने क्या है राइट टू रिकॉल एक्ट

हरियाणा विधानसभा में पारित हुए राइट टू रिकॉल विधेयक के बारे में जानकारी देते हुए हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा है कि पंचायत विभाग के पास ऐसी काफी शिकायतें आती थी कि गांव के सरपंच अपनी मनमानी करते हैं व ग्रामीणों की भावनाओं के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं. प्रतिवर्ष इस प्रकार की शिकायतें ब्लॉक स्तर से लेकर जिला स्तर और प्रदेश मुख्यालय तक आती है. उपमुख्यमंत्री ने कहा है कि राइट टू रिकॉल विधेयक के पास होने के पश्चात अब गांव के लोगों के पास अधिकार है कि अगर सरपंच गांव में विकास कार्य नहीं करवा रहे हैं या कोई ऐसा कार्य कर रहे हैं जो ग्रामीणों की जन भावनाओं के विरुद्ध हो तो उसे कार्यकाल की समाप्ति से पहले ही अपने पद से हटाया जा सकता है.

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जन प्रतिनिधि को हटाने की प्रक्रिया

गांव के जन प्रतिनिधियों को हटवाने के लिए गांव के 33 प्रतिशत मतदाताओं को अविश्वास पत्र में शिकायत लिखकर संबंधित अधिकारी को देनी होगी. फिर यह प्रस्ताव खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी और CIO के पास पहुंचेगा. इसके पश्चात 2 घंटे ग्राम सभा की बैठक बुलाई जाएगी और मामले के बारे में चर्चा की जाएगी. बैठक के तुरंत बाद ही एक गुप्त मतदान करवाया जाएगा और यदि 67 प्रतिशत ग्रामीण लोगों ने जनप्रतिनिधि के विरुद्ध मतदान किया तो उस जन प्रतिनिधि को उसके पद से हटा दिया जाएगा.

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एक वर्ष में एक बार ही लाया जा सकता है अविश्वास प्रस्ताव

बता दें कि जनप्रतिनिधि के चुनाव के एक वर्ष बाद ही इस नियम के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकेगा. यदि अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने पर मतदान में सरपंच या जन प्रतिनिधि के विरूद्ध दो तिहाई मत नहीं पड़ते हैं तो आने वाले एक वर्ष तक फिर दोबारा अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा. इस प्रकार राइट टू रिकॉल के तहत अविश्वास एक वर्ष में सिर्फ एक बार ही लाया जा सकता है. डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने कहा है कि इस विधेयक के लागू होने के पश्चात ग्रामीण क्षेत्रों के विकास कार्यों को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने कहा है कि इससे सरपंच भी गांव के लोगों की भावनाओं के अनुसार ही विकास कार्यों को प्राथमिकता देंगे.

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