हिसार | HAU के कृषि वैज्ञानिकों ने साल 2020 में मूंग दाल की नई रोग प्रतिरोधक किस्म को विकसित किया है. मूंग की इस नई किस्म को MH 1142 का नाम दिया गया है. MH 1142 को उत्तरी भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मात्रा में पैदा किया जा सकता है.
MH 1142 के खास गुण
इस किस्म की खास बात यह है कि इसमें पिला मोजैक, पत्ता झूरी, पत्ता मरोड़ जैसे विषाणु रोग एवं सफेद चूर्णी जैसे फफूंद रोगों को रोकने की प्रतिरोधक क्षमता है.
13 सालों की मेहनत रंग लाई
कुलपति प्रोफेसर समर सिंह और डिरेक्टर रिसर्च डॉ एस के सहरावत ने HAU के फैकल्टी हाउस में प्रेस वार्ता मे बताया कि मूंग की इस किस्म (MH 1142) को यूनिवर्सिटी के अनुवांशिक एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग ने विकसित किया है. दलहन अनुभाग के कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजेश यादव ने बताया है कि इस किस्म को तैयार करने में 13 साल के करीब का समय लगा है.
70 दिनों में आसानी से हो सकती है तैयार
HAU के अनुसंधान निर्देशक डॉ SK सेहरावत ने बताया कि खरीफ की ऋतू में उगने वाली MH 1142 की खास बात यह है कि इसकी फसल एक साथ पककर तैयार हो जाती है. इसे पककर तैयार होने में लगभग 70 दिन लगते हैं. इसका पौधा सीधा और सीमित बढ़वार, कम फैलाव दार वाला है जिससे इसकी कटाई आसानी से हो जाती है. इसकी एवरेज पैदावार भिन्न-भिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मापी गई है.
इन वैज्ञानिकों का रहा योगदान
मूंग की इस किस्म (MH 1142) को यूनिवर्सिटी के अनुवांशिक एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग के कृषि वैज्ञानिक डॉ राजेश यादव, डॉ रविका, डॉ नरेश कुमार, डॉ पीके वर्मा और एके छाबड़ा ने अथक परिश्रम से लगभग 13 सालों में विकसित किया है. इस उपलब्धि को विश्विद्यालय के नाम कराने में डॉ एसके शर्मा, डॉ एएस राठी, डॉ तरुण वर्मा और डॉ रोशन लाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
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