पानीपत | कुछ ही दिनों बाद रंगो का त्यौहार आने वाला है. अभी से ही होली की तैयारियां आरंभ हो चुकी हैं. 21 मार्च 2021 से होलाष्टक की अवधि आरंभ हो जाएगी. 28 मार्च 2021 तक होलाष्टक चलेगा. इस समय अवधि में हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से केवल अंतिम संस्कार को छोड़कर बाकी सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह संस्कार आदि पूर्ण रूप से वर्जित रहेंगे. धार्मिक विशेषज्ञों के अनुसार 21 से लेकर 28 मार्च के बीच होलाष्टक अवधि के दौरान कोई भी इस प्रकार का मांगलिक कार्य न करें.
ना करें इस प्रकार के मांगलिक कार्य
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर होलिका दहन तक की समय अवधि को शास्त्रों में होलाष्टक कहा गया है. इस बारे में श्री राम पंचायतन सिद्ध पीठ के महंत राघवेंद्र स्वामी ने जानकारी देते हुए कहा है कि पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इन दिनों कोई भी मांगलिक कार्य जैसे गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार, नया व्यवसाय, विवाह संस्कार का शुभारंभ पूर्ण रूप से वर्जित है. प्रचलित कथाओं के मुताबिक भगवान शंकर की तपस्या को कामदेव ने भंग कर दिया था. जिससे भगवान शंकर बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो गए थे और उन्होंने फागुन शुल्क पक्ष की अष्टमी तिथि को कामदेव को भस्म कर दिया था. इसके पश्चात कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शंकर की आराधना की. जिससे भगवान शंकर रति से प्रसन्न हो गए और उन्होंने रती को आश्वासन दिया कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में कामदेव पुनर्जन्म लेंगे. इसका वर्णन श्री रामचरितमानस के बालकांड में भी हैं.
यह है प्रचलित मान्यता
महादेव के फैसले के पश्चात अगले दिन सभी ने उस दिन को बड़ी ही प्रसन्नता एवं धूमधाम से मनाया. प्रचलित कथाओं में एक कथा और भी है. इस कथा के अनुसार भगवान शंकर की तपस्या को भंग करने में कामदेव को 8 दिन लग गए थे. इसी परंपरा की वजह से 8 दिनों तक कोई भी मांगलिक कार्य करना अशुभ माना जाता है. पिछले साल त्रयोदशी का क्षय होने की वजह से होलाष्टक की अवधि 7 दिनों की ही रही थी.
इन 8 दिनों के अशुभ होने का ज्योतिष कारण
उन्होंने इस बात को भी स्पष्ट किया कि ज्योतिष कारण से कहीं अधिक ज्यादा तर्कसंगत वैज्ञानिक कारण भी हैं. ज्योतिष के मुताबिक अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को सूर्य, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल व पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव वाले हो जाते हैं. इसी वजह से मनुष्य कोई भी विवेकपूर्ण फैसला लेने में सक्षम नहीं रह पाता. इसलिए जितना प्रयास हो सके होलाष्टक की अवधि में कोई भी नया कार्य या कोई मांगलिक कार्य न करें.
15 मार्च को मनाया गया फुलेरा दूज
होलिका दहन के दिन होलाष्टक का समापन हो जाता है. 28 मार्च को होलिका दहन है. होली के उत्सव की शुरुआत फुलेरा दूज से होती है. कई स्थानों पर 15 मार्च को फुलेरा दूज मनाया गया. पुरानी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण राधा रानी के साथ फूलों से खेलते हैं. ब्रज में होली बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है.
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