Kanwar Yatra 2022: सावन में कांवड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई, यहाँ पढ़े पौराणिक कथा

हिसार, Kanwar Yatra 2022 | सावन के पवित्र महीने की शुरुआत हो चुकी है और इस महीने में भगवान शिव की पूजा करने के लिए मंदिरों में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है. गांवों, शहरों से युवाओं की टोली केसरिया रंग के वस्त्र धारण कर कांवड़ यात्रा पर जाते हैं और गंगा नदी का पवित्र जल कांवड़ में भर कर लाते हैं तथा सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.

Kanwar Yatra 2021

बता दें कि कांवड़ यात्रा की यह परम्परा दशकों पुरानी है और इसमें हर समुदाय के लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर सबसे पहला कांवड़ यात्री कौन था. वेद शास्त्रों में कांवड़ यात्रा को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. इन कथाओं में भगवान श्रीराम, लंकापति रावण , परशुराम या फिर श्रवण कुमार को सबसे पहला कांवड़ यात्री माना गया है. आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा शुरू करने के पीछे पौराणिक कथाएं…

कांवड़ यात्रा शुरू होने की पहली कथा

कुछ विद्वानों ने बताया है कि भगवान परशुराम को पहले कांवड़िए के रुप में जाना गया है. उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल ले जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था. इसके साथ ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.

कांवड़ यात्रा शुरू होने की दूसरी कथा

कुछ विद्वानों का मानना है कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत त्रेता युग में हुई थी. जब श्रवण कुमार के माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा जाहिर की थी. ऐसे में आज्ञाकारी श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कंधे पर कांवड़ में बिठा कर पैदल यात्रा की और उन्हें गंगा स्नान करवाया. बताते हैं लौटते समय श्रवण कुमार गंगाजल भी साथ लेकर आया था, जिससे उन्होंने महादेव का जलाभिषेक किया था और इसके साथ ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई थी.

कांवड़ यात्रा शुरू होने की तीसरी कथा

कांवड़ यात्रा शुरू होने के पीछे तीसरा तर्क लंकापति रावण का भी दिया गया है. सब जानते हैं कि रावण महादेव का परम भक्त था. मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले विष का पान करने से भगवान शिव का गला जलने लगा तब देवी देवताओं ने तो जलाभिषेक किया ही था, इसके अलावा शिव जी ने अपने परम भक्त रावण का स्मरण किया तो रावण ने कांवड़ से जल लेकर भगवान शिव का अभिषेक किया, जिससे शिव जी को विष के प्रभाव से मुक्ति मिली थी. बताया जाता है कि इसके बाद से ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.

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