नारनौल । अगर आपके बुलंद इरादे हैं तो आपको कोई नहीं रोक सकता, यह बात आज अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी संदीप कुमार ने साबित करके दिखाई है. बता दे कि संदीप कुमार ने बकरियां चराते चराते विश्व के खेल मैदान को नाप दिखाया है . जी हां अंतरराष्ट्रीय रेस वाकिंग में ओलंपिक का टिकट पक्का करने वाले जिले के गांव सुरेती पिलानिया निवासी संदीप कुमार बहुत ही गरीब परिवार से संबंध रखते हैं. उनके पिता प्रीतम सिंह ने बकरिया व खेतों में मजदूरी कर संदीप को इस मुकाम तक पहुंचाने का कार्य किया.
संदीप के संघर्ष में माता-पिता ने निभाई अहम भूमिका
संदीप की मां ओमवती का करीब 24 वर्ष पहले ही निधन हो गया था. उस समय संदीप की आयु केवल 7- 8 साल की थी. संदीप के परिवार में एक बहन ममता व बड़ा भाई सुरेंद्र है. सुरेंद्र अपने पिता के साथ ही खेती करता है. वही संदीप की भाभी अनीता देवी ने जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने घर में 20- 22 बकरिया पाली हुई है. संदीप के संघर्ष में उनके माता-पिता ने अहम भूमिका निभाई है. जब संदीप की मां का निधन हुआ उस समय संदीप बहुत छोटा था. उस समय परिवार की आर्थिक हालत भी सही नहीं थी. वैसे तो उनके पास 5 एकड़ जमीन थी, लेकिन जमीन ज्यादा उपजाऊ न होने के कारण उन्हें बकरियां पाल कर ही गुजारा करना पड़ता था.
सेना में सूबेदार पद पर भर्ती होने से आर्थिक हालात सुधरे
संदीप ने बड़ी मुश्किल से पढ़ाई की है. बचपन से ही संदीप खेलकूद में अव्वल था. संदीप ने 50 किलोमीटर वाकिंग में नए रिकॉर्ड बनाए और उनके सेना में सूबेदार पद पर भर्ती होने के बाद घर के आर्थिक हालात में सुधार हुआ. बता दे कि रियो ओलंपिक 2016 में भी संदीप भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. उनकी सफलता के पीछे उनके पिता प्रीतम सिंह के संघर्ष की गाथा छुपी हुई है.
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