नई दिल्ली | भारत का चंद्रयान 3 अपने सफर पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने शुक्रवार को बताया कि यान ने दो तिहाई सफर पूरा कर लिया है. 14 जुलाई को रवाना हुआ यह चंद्रयान शनिवार को चांद की कक्षा में प्रवेश कर लेगा. लॉन्चिंग के बाद से 5 बार यान की कक्षा में बदलाव किया गया है. 1 अगस्त को स्लिंगशाट के बाद पृथ्वी की कक्षा छोड़कर यान चांद की ओर रवाना हुआ था.
आज शाम 5 बजे चांद की कक्षा में होगा प्रवेश
इसरो ने बताया कि पांच अगस्त को शाम सात बजे यान को चांद की कक्षा में प्रवेश कराया जाना है. यान को उस समय प्रविष्ट कराया जाएगा जब उसकी अभीष्ट कक्षा चांद से सबसे नजदीकी बिंदु पर होगी. इस प्रक्रिया को लूनर आर्बिट इंजेक्शन (LOI) कहा जा रहा है. इसके बाद, कुछ दिन यान चांद की कक्षा में यहीं पर परिक्रमा करेगा.
उसके बाद, क्रमिक रूप बदलाव करते हुए यान को चंद्र की निकटतम कक्षा में पहुंचाया जाएगा. इससे पहले इसरो (ISRO) बताया था कि यान पूरी तरह निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आगे बढ़ रहा है. 23 अगस्त को यान के लैंडर- रोवर को चंद्रमा की सतह पर उतार दिया जाएगा.
मिशन सफल होने पर चौथा देश होगा भारत
अब तक तीन देशों ने ही चांद पर सफल लैंडिंग की है, इसमें अमेरिका, रूस और चीन शामिल हैं. भारत ने साल 2019 में चंद्रयान- 2 मिशन के अंतर्गत लैंडर को उतारने का प्रयास किया था. आखिरी समय में लैंडर से संपर्क टूट गया था और उसकी क्रैश लैंडिंग हो गई थी. इस बार अगर लैंडिंग सफल रही तो ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा. राकेट की लागत को हटा दिया जाए तो चंद्रयान- 3 की कुल लागत 250 करोड़ रुपये है. अन्य देशों की लागत इससे कई गुना ज्यादा रही है.
यान में हैं तीन माड्यूल
चंद्रयान- 3 में नासा की ओर से 3 माड्यूल लगाए गए हैं. प्रोपल्शन, लैंडर और रोवर प्रोपल्शन माड्यूल में स्पेक्ट्रो पोलेरिमेट्री आफ हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ (शेप) पेलोड है. यह चंद्र की कक्षा से पृथ्वी का अध्ययन करने की कोशिश करेगा. लैंडर में चांद की सतह व वातावरण के अध्ययन के लिए तीन मॉडल लगाए गए हैं. नासा का भी एक पेलोड भेजा गया है. रोवर में दो पेलोड हैं जो लैंडिंग साइट के आसपास का अध्ययन करेंगे.
प्रोपल्शन माड्यूल चांद की सतह से 100 किलोमीटर दूर से लैंडर-रोवर को छोड़ देगा. इसके बाद, लैंडर अपने साथ रोवर को लेकर चांद की सतह पर लैंड करेगा और वहां रोवर उससे अलग हो जाएगा. लैंडर- रोवर एक चंद्र दिवस तक अध्ययन करेंगे. यह अवधि पृथ्वी पर 14 दिन के बराबर है.
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