नई दिल्ली, Delhi Govt Vs LG Row Supreme Court | राजधानी दिल्ली का असली बॉस कौन है, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया. एलजी बनाम दिल्ली सरकार के इस मामले में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने कहा कि दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर- पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है. कोर्ट का यह फैसला दिल्ली सरकार की बड़ी जीत है. इस फैसले से सीएम अरविंद केजरीवाल और मजबूत हो गए हैं.
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हम जस्टिस अशोक भूषण के 2019 के उस फैसले से सहमत नहीं हैं जिसमें कहा गया था कि दिल्ली सरकार का संयुक्त सचिव स्तर से ऊपर के अधिकारियों पर कोई अधिकार नहीं है. भले ही एनसीटीडी पूर्ण राज्य नहीं है लेकिन इसके पास कानून बनाने का अधिकार है.
केंद्र सरकार ने 2021 में गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट (GNCTD Act) में संशोधन किया था. इसमें दिल्ली के उपराज्यपाल को कुछ और अधिकार दिए गए थे. आम आदमी पार्टी ने इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए 18 जनवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सेवाओं पर नियंत्रण सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से संबंधित प्रविष्टियों तक नहीं होगा।
दिल्ली सरकार अन्य राज्यों की तरह प्रतिनिधि रूप का प्रतिनिधित्व करती है और संघ की शक्ति का कोई और विस्तार संवैधानिक योजना के विपरीत होगा: सुप्रीम कोर्ट… pic.twitter.com/NcrnJtm8UI
— ANI_HindiNews (@AHindinews) May 11, 2023
जानिए केजरीवाल सरकार के अधिकार
- एलजी के पास दिल्ली से जुड़े मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक अधिकार नहीं हो सकते. यानी दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार.
- अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है.
- एलजी को दिल्ली विधानसभा और चुनी हुई सरकार की विधायी शक्तियों में दखल देने का अधिकार नहीं है.
- उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की सलाह और सहायता से प्रशासन चलाएंगे.
- अगर केंद्रीय कानून नहीं है तो दिल्ली सरकार नियम बना सकती है.
एससी ने की ये बड़ी टिप्पणी
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली की विधानसभा प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांत की प्रतीक है, उसे जन आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए कानून बनाने की शक्तियां दी गई हैं.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संघवाद के सिद्धांत का सम्मान किया जाना चाहिए. केंद्र सभी विधायी, नियुक्ति शक्तियों को अपने हाथों में नहीं ले सकता है.
- अगर चुनी हुई सरकार अधिकारियों को नियंत्रित नहीं कर सकती तो जनता के प्रति अपनी सामूहिक जिम्मेदारी कैसे निभाएगी.
- अगर चुनी हुई सरकार के पास यह अधिकार नहीं है तो जवाबदेही की तिहरी कड़ी पूरी नहीं होती.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है. ऐसे में राज्य पहली सूची में नहीं आता है.
- एनसीटी दिल्ली की शक्तियां अन्य राज्यों की तुलना में कम हैं लेकिन सूची 2 और 3 के तहत विषयों पर विधानमंडल को अधिकार दिया गया है.
- लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के पास लोगों की इच्छा को लागू करने की शक्ति होनी चाहिए.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को कानून बनाने का अधिकार है लेकिन केंद्र को इतना दखल नहीं देना चाहिए कि वह राज्य सरकार का काम अपने हाथ में ले ले.
- संवैधानिक पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने के लिए केंद्र की दलीलों से निपटना जरूरी है. एनसीटीडी अधिनियम की धारा 239एए अधिकारों की एक विस्तृत श्रृंखला को परिभाषित करती है.
- संविधान पीठ ने कहा- अगर अधिकारी मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर देते हैं या उनके निर्देशों का पालन नहीं करते हैं तो सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत प्रभावित होता है.
- यदि “सेवाओं” को विधायी और कार्यकारी दायरे से बाहर रखा जाता है तो मंत्रियों को उन सिविल सेवकों को नियंत्रित करने से बाहर रखा जाएगा जिन्हें कार्यकारी निर्णयों को लागू करना है.
- अगर किसी अधिकारी को लगता है कि सरकार उसे नियंत्रित नहीं कर सकती तो उसकी जिम्मेदारी कम हो जाएगी और उसका काम प्रभावित होगा. उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह पर ही काम करना होगा.